अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

देश के लाल - लाल बहादुर शास्त्री

 (कथा-कहानी) 
 
रचनाकार:

 भारत-दर्शन संकलन | Collections

बात उन दिनों की है जब लालबहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे व केरल में सूखा पड़ा हुआ था। चावल की खेती पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी। लोग चावल के दाने को तरसने लगे थे। चूंकि केरलवासियों का मुख्य भोजन चावल ही है इसलिए राज्य सरकार चिंतित थी कि केरल निवासी अपनी दिनचर्या कैसे करेंगे!

शास्त्री जी केरल की समस्या जानकर बहुत व्यथित हुए। उन्होंने केरल सरकार को आश्वासन दिया कि प्रदेश के लिए चावल का उचित प्रबंध किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मेरा संकल्प है कि हर केरलवासी को चावल मिलेगा। बिना चावल के एक भी भाई-बहन भूखा नहीं रहेगा। केरल की जनता को चावल के लिए त्राहि-त्राहि करते देखकर उन्होंने अधिकारियों को चावल की कमी पूरी करने के आदेश दिए। देश के अन्य क्षेत्रों से चावल खरीदकर केरल भेजा जाने लगा।

ऐसे में अन्य प्रदेशों में चावल की कमी होनी स्वाभाविक थी। शास्त्री जी ने रोटी खा सकने वाले लोगों से अनुरोध किया कि वे चावल का प्रयोग कम से कम करें और जो लोग स्वाद के लिए प्रतिदिन चावल का प्रयोग करते हैं, वे भी इसका प्रयोग अनिवार्य होने पर ही करें। उन्होंने अपने घर में भी निर्देश दिए थे कि जब तक केरल में चावल की कमी पूरी नहीं हो जाती तब तक उनके घर में चावल नहीं पकाए जाएं। यह आदेश सुनकर शास्त्रीजी के बच्चे दुखी हुए क्योंकि चावल उन्हें भी प्रिय थे लेकिन शास्त्री जी के आदेश का पालन किया गया।

प्रधानमंत्री निवास में तब तक चावल नहीं पकाए गए जब तक कि केरल की स्थिति पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पा लिया गया। केरल की सरकार व निवासियों के सहित संपूर्ण भारत ने शास्त्री जी की कार्यशैली के प्रति नतमस्तक हो गया कि  शास्त्री जी ने केरल की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझकर प्रधानमंत्री निवास तक में चावल बनने पर रोक लगा दी। 

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[ भारत-दर्शन संकलन ]

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