अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

मौन ओढ़े हैं सभी | राजगोपाल सिंह का गीत

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 राजगोपाल सिंह

मौन ओढ़े हैं सभी तैयारियाँ होंगी ज़रूर
राख के नीचे दबी चिंगारियाँ होंगी ज़रूर

आज भी आदम की बेटी हंटरों की ज़द में है
हर गिलहरी के बदन पर धारियाँ होंगी ज़रूर

नाम था होठों पे सागर, पर मरुस्थल की हुई
उस नदी की कुछ-न-कुछ लाचारियाँ होंगी ज़रूर

हमने ऐसे रंग फूलों पर कभी देखे न थे
तितलियों के हाथ में पिचकारियाँ होंगी ज़रूर

एक मौसम आए है तो एक मौसम जाए है
आज है मातम तो कल किलकारियाँ होंगी ज़रूर

- राजगोपाल सिंह

 

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