अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है
यह सवेरा भी क्या सवेरा है

हम उजाले की आस रखते थे
अब अँधेरा अधिक घनेरा है

दैन्य, दुख, दर्द, शोक कुंठाएं
इन सभी ने मनुज को घेरा है

तेरे मेरे का यह विवाद है क्या
कुछ न तेरा यहाँ न मेरा है

उनका आना और आके चल देना
जोगियों की तरह का फेरा है

कोई गुज़रा है चाँद सा जिसने
पथ में आलोक सा बिखेरा है

बच के जाएं तो हम कहाँ 'राणा'
हम को सौ मुश्किलों ने घेरा है

- डा. राणा प्रताप गन्नौरी 'राणा'

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