जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 

डॉ. रामनिवास मानव के दोहे

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav

डॉ. 'मानव' दोहा, बालकाव्य तथा लघुकथा विधाओं के सुपरिचित राष्ट्रीय हस्ताक्षर हैं तथा विभिन्न विधाओं में लेखन करते हैं। उनके कुछ दोहे यहां दिए जा रहे हैं:

1
ये पत्थर की मूर्तियां, ये पाहन के देव।
इनकी पूजा-अर्चना, मुझको लगे कुटेव।।

2
गगन-विहारी देवता, ब्रह्मा-विष्णु-महेश।
मिलकर कुछ ऐसा करें, विश्व का मिटे क्लेश।।

3

अब तक जब मांगा नहीं, कभी किसी से दान।
फिर तुमसे मां शारदे, मांगूं क्यों अवदान।।

4
देना हो तो दो मुझे, बस इतना वरदान।
शब्द-शब्द समिधा बने, अर्थ-अर्थ यजमान।।

5

अग्निधर्मा अर्थ हो, शक्तिधर्मा शब्द।
अपने हाथों से लिखूं, कविता का प्रारब्ध।।

6
इतनी विनती और है, देना यह आशीष।
कभी याचना के लिये, झुके न मेरा शीश।।

-डॉ. रामनिवास मानव

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