यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
 

दादी कहती दाँत में | बाल कविता

 (बाल-साहित्य ) 
 
रचनाकार:

 प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड

दादी कहती दाँत में मंजन नित कर नित कर नित कर 
साफ़-सफाई दाँत जीभ की नितकर नित कर नित कर। 
 
सुन्दर दांत सभी को भाते 
आकर्षित कर जाते, 
खूब मिठाई खाओ अगर तो 
कीड़े इनमें लग जाते, 
दोनों समय नियम से मंजन नित कर नित कर नित कर 
दादी कहती दांत में मंजन नित कर नित कर नित कर। 

खाकर कुल्ला ना भूलो करना 
मुँह से बदबू आएगी वरना, 
ध्यान ना रक्खा यदि इसका तो 
दर्द भी तुमको पड़ेगा सहना, 
चमचम चमके दाँत तो मंजन नित कर नित कर नित कर 
दादी कहती दाँत मंजन नित कर नित कर नित कर। 

-प्रीता व्यास
 न्यूज़ीलैंड

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