यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
 

मैं पढ़ता दीदी भी पढ़ती | बाल कविता

 (बाल-साहित्य ) 
 
रचनाकार:

 दिविक रमेश

कभी कभी मन में आता है
क्यों माँ दीदी को ही कहती
साग बनाओ, रोटी पोओ ?

कभी कभी मन में आता हॆ
क्यों माँ दीदी को ही कहती
कपड़े धोलो, झाड़ू दे लो ?

कभी कभी मन में आता हॆ
क्या मैं सीख नहीं सकता हूं
साग बनाना, रोटी पोना?

कभी कभी मन में आता है
क्या मैं सीख नहीं सकता हूँ
कपड़े धोना, झाडू देना ?

मैं पढ़ता दीदी भी पढ़ती
क्यों माँ चाहती दीदी ही पर
काम करे बस घर के सारे?

कभी कभी मन में आता हॆ
थक जाती होगी ना दीदी
क्यों ना काम करें हम मिलकर?

-दिविक रमेश

 

[Children's Hindi Poems by Divik Ramesh]

 

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