यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
 

तेरी मरज़ी में आए जो

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है
कहीं पर दिन निकलता है, कहीं पर रात होती है
कहीं सूखा पड़ा भारी, कहीं बरसात होती है
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है

कभी खुशियों भरे थे दिन, कभी बस पीड़ होती है
तेरी मरज़ी से जीते हैं, तुझी से मात होती है
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है

मेरी यादों में जिंदा है, कभी ख्वाबों में आता है
मैं जितना भूलना चाहूं, वो उतना याद आता है
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है
कहीं पर दिन निकलता है, कहीं पर रात होती है

जिसे तुम प्यार करते हो, कहां खोकर भी खोता है
वो चाहे ना दिखाई दे, तुम्हारे पास होता है
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

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