यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
 

सिना और ईल

 (कथा-कहानी) 
 
रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

बहुत पुरानी बात है। सामोआ द्वीप में सिना नाम की एक खूबसूरत लड़की रहती थी। सिना के घर के पास समुद्र ही समुद्र था। सिना पानी में खूब तैरती और तरह-तरह की जल क्रीडाएं करती। वहीं समुद्र तट के पास रहने वाली एक ईल मछली सिना के साथ-साथ तैरती और खेलती। समय बीतता गया और ईल सिना की बहुत अच्छी दोस्त बन गई। सिना और ईल साथ-साथ तैरती, साथ-साथ खेलती। सिना तैरती हुई जहाँ भी जाती ईल उसके साथ-साथ रहती। ईल अब आकार में बड़ी होती जा रही थी और सिना के प्रति उसका लगाव अब सिना को बंधन सा लगने लगा। सिना ईल से तंग आने लगी।

एक बार सिना अपने रिश्तेदारों के यहाँ किसी गांव में गयी। एक दिन जब वह वहाँ समुद्र में तैर रही थी तो उसने देखा कि एक ईल भी उसके साथ-साथ चल रही है। उसने झट से पहचान लिया कि यह तो वही ईल है। उसे आश्चर्य हुआ और मन में एक प्रकार का भय भी। वह तेज-तेज तैरकर समुद्र तट की ओर जाने लगी। ईल भी तेजी से उसके साथ-साथ तैर रही थी। सिना जैसे-तैसे समुद्र तट पर पहुंची। वह मारे डर के हाँफ रही थी। उसने मुड़कर एक बार समुद्र तट की ओर देखा, ईल अब भी वहीं खड़ी मानो उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। दूसरे दिन फिर जब सिना समुद्र में नहाने के लिए गयी तो ईल उसके साथ-साथ तैरने लगी। अब तो सिना भयभीत हो गई। उसे ईल का साथ खलने लगा। वह आज फिर जल्दी से समुद्र तट की ओर तैरने लगी ताकि वह ईल से पीछा छुड़ा सके।

‘इससे मैं किस प्रकार पीछा छुड़ा सकती हूँ?' सिना घर जाते-जाते यही सोच रही थी। घर जा कर उसने अपने रिश्तेदारों को ईल की सारी कहानी कह सुनाई। यह सुनकर सिना के एक चचेरे भाई को बड़ा गुस्सा आया।

"अच्छा सिना, तुम कल फिर तैरने जाना। मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा। तुम मुझे एक बार इशारा करना और मैं उस ईल को ठीक कर दूंगा।"

भाई का आश्वासन सुनकर सिना को कुछ राहत हुई। अगले दिन सिना अपने भाई के साथ फिर से समुद्र में तैरने गयी।
सिना का चचेरा भाई पास ही कहीं छुपकर बैठ गया ताकि वह ईल को देख सकें। सिना के पानी में घुसते ही ईल उसके साथ-साथ तैरने लगी। अब सिना समुद्र तट की ओर वापस तैरने लगी। ईल भी उसके साथ-साथ समुद्र तट की ओर तैरकर आने लगी। ज्यों ही ईल समुद्र तट की ओर आई, सिना के चचेरे भाई ने एक धारदार हथियार के साथ ईल पर वार किया। ईल का धड़ धरती पर आ गिरा। ईल ने मरते-मरते कहा कि मेरे धड़ को दफना दिया जाए।

सिना और उसके रिश्तेदारों ने समुद्र तट के पास ही एक बड़ा गड्ढा खोदकर उसे वहाँ दफना दिया।

कुछ दिनों के बाद उसी जगह पर एक पेड़ उगा। सिना जब भी समुद्र के किनारे जाती तो उस पेड़ को देखती। उस पेड़ पर एक अजीब तरह का फल उगा। यह गोलाकार ठोस लकड़ी का फल था। इस फल पर ईल जैसी ही आकृति थी, इसके दो आंखें और एक मुँह था। यह फल था ‘नारियल'। जब भी सिना वहाँ जाती तो नारियल के पेड़ से एक नारियल लुढ़ककर सिना की ओर आ जाता। सिना उसमें छिद्र करके नारियल का पानी पीती। वह जब नारियल का पानी पीती तो ऐसे लगता जैसे नारियल की दो आंखें

उसी को निहार रही है और उसके छिद्र को जब वह अपने होठों से लगाकर पानी पीती तो मानो वह उसका चुंबन कर रही हो।

भावानुवाद : रोहित कुमार 'हैप्पी'

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश