देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

तुलसी की चौपाइयां

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 तुलसीदास | Tulsidas

किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनूरूप।।
जथा अनेक वेष धरि नृत्य करइ नट कोइ ।
सोइ सोइ भाव दिखावअइ आपनु होइ न सोइ ।।


तुलसीदास की मान्यता है कि निर्गुण ब्रह्म राम भक्त के प्रेम के कारण मनुष्य शरीर धारण कर लौकिक पुरुष के अनूरूप विभिन्न भावों का प्रदर्शन करते हैं। नाटक में एक नट अर्थात् अभिनेता अनेक पात्रों का अभिनय करते हुए उनके अनुरूप वेषभूषा पहन लेता है तथा अनेक पात्रों अर्थात् चरितों का अभिनय करता है। जिस प्रकार वह नट नाटक में अनेक पात्रों के अनुरूप वेष धारण करने तथा उनका अभिनय करने से वे पात्र नहीं हो जाता, नट ही रहता है उसी प्रकार रामचरितमानस में भगवान राम ने लौकिक मनुष्य के अनुरूप जो विविध लीलाएँ की हैं उससे भगवान राम तत्वत: वही नहीं हो जाते ,राम तत्वत: निर्गुण ब्रह्म ही हैं। तुलसीदास ने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा है कि उनकी इस लीला के रहस्य को बुदि्धहीन लोग नहीं समझ पाते तथा मोहमुग्ध होकर लीला रूप को ही वास्तविक समझ लेते हैं। आवश्यकता तुलसीदास के अनुरूप राम के वास्तविक एवं तात्त्विक रूप को आत्मसात् करने की है ।

 

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Posted By Y.N.Mishra   on
शब्द ताड़ना का अर्थ सबको पीटने से नहीं है. ताड़ना का अर्थ ढोल, गंवार, पशु और स्त्री के सन्दर्भ में अलग-अलग है क्योंकि सबमे ढोल निर्जीव है बाकि सभी चैतन्य प्राणी है. इसलिए इस चौपाई का अर्थ करते समय इसका ध्यान रखना आवश्यक है. इस चौपाई के अर्थ को अनर्थ बनकर आजकल जो भ्रांतिया फलै जा रही है उसे समझने की आवश्यकता है. तुलसीदास जैसे महान संत को आज के कुछ लोग सस्ती लोकप्रियता के लिए बदनाम कर रहे है और समाज को बांटने का काम कर रहे है.
 
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