भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
 

मातृ-मन्दिर

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

भारतमाता का यह मन्दिर, समता का संवाद यहाँ,
सबका शिव-कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।
नहीं चाहिये बुद्धि वैरकी, भला प्रेम-उन्माद यहाँ,
कोटि-कोटि कण्ठों से मिलकर,उठे एक जयनाद यहाँ ।
जाति,धर्म या सम्प्रदाय का, नहीं भेद-व्यवधान यहाँ,
सबका स्वागत सबका आदर, सबका सम-सम्मान यहाँ।
राम-रहीम, बुद्ध-ईसा का, सुलभ एक सा ध्यान यहाँ,
भिन्न-भिन्न भव-संस्कृतियों के गुण-गोख का ज्ञान यहाँ ।
सब तीर्थो का एकतीर्थ यह, हृदय पवित्र बना लें हम,
आओ यहाँ अजातशत्रु बन, सबको मित्र बना लें हम।
रेखाएं प्रस्तुत हैं अपने, मन के चित्र बना लें हम,
सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम।
मिला सत्य का हमें पुजारी, सफल काम उस न्यायी का,
मुक्तिलाभ कर्तव्य यहाँ है, एक-एक अनुयायी का ।
बैठो माता के आँगन में, नाता भाई-भाई का,
समझे उसकी प्रसव वेदना, वही लाल है माई का।

- मैथिलीशरण गुप्त

 

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश