देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने कहा था | अमर वचन

 (विविध) 
 
रचनाकार:

 रामप्रसाद बिस्मिल

यदि किसी के मन में जोश, उमंग या उत्तेजना पैदा हो तो शीघ्र गावों में जाकर कृषकों की दशा सुधारें।

#

किसी को घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाये, किन्तु सबके साथ करुणा सहित प्रेमभाव का बर्ताव किया जाए।

#

श्रम-जीवियों की उन्नति की चेष्टा करें, जहां तक हो सके साधारण जन समूह को शिक्षा दें।

#

यथा साध्य दलितोद्धार के लिए प्रयत्न करें।

#

मैं जानता हूँ कि मैं मरूँगा, किन्तु मैं मरने से नहीं घबराता। किन्तु जनाब, क्या इससे सरकार का उद्देश्य पूर्ण होगा? क्या इसी तरह हमेशा भारत माँ के वक्षस्थल पर विदेशियों का तांडव नृत्य होता रहेगा? कदापि नहीं, इतिहास इसका प्रमाण है। मैं मरूँगा किन्तु फिर दुबारा जन्म लूँगा और मातृभूमि का उद्धार करूँगा

#

उदय काल के सूर्य का सौन्दर्य डूबते हुए सूर्य की छटा को कभी नहीं पा सकता।

#

प्रेम का पंथ कितना कठिन है, संसार की सारी आपत्तियाँ मानों प्रेमी के लिए ही बनी हों!

#

उफ़! कैसा व्यापार है कि हम सब कुछ दे दें और हमें------कुछ नहीं। लेकिन फिर भी हम मानें नहीं।

#

यदि देशहित मरना पड़े मुझे सहस्रों बार भी, तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाऊं कभी। हे ईश! भारतवर्ष में शत बार मेरा जन्म हो, कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो।

- रामप्रसाद 'बिस्मिल'

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश