प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
 

कस ली है कमर अब तो

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।

हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।

बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरखे का
चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुँजा देंगे।

परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की 
है जान हथेली पर, एक दम में गवाँ देंगे।

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज न निकालेंगे
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।

दिलवाओ हमें फाँसी, ऐलान से कहते हैं
खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।

मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम,
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।

-अशफ़ाक उल्ला खाँ

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