अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

ये गजरे तारों वाले

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 डॉ रामकुमार वर्मा

इस सोते संसार बीच,
जग कर सज कर रजनी वाले !
कहाँ बेचने ले जाती हो,
ये गजरे तारों वाले ?

मोल करेगा कौन,
सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी ।
मत कुम्हलाने दो,
सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी ॥

निर्झर के निर्मल जल में,
ये गजरे प्रतिबिंबित धोना ।
लहर हहर कर यदि चूमे तो,
किंचित् विचलित मत होना ॥

होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित,
लहरों ही में लहराना ।
लो मेरे तारों के गजरे
निर्झर-स्वर में यह गाना ॥

यदि प्रभात तक कोई आकर,
तुम से हाय न मोल करे।
तो फूलों पर ओस-रूप में
बिखरा देना सब गजरे॥

- रामकुमार वर्मा
 (अंजलि से)

 

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