अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

कुतिया के अंडे

 (कथा-कहानी) 
 
रचनाकार:

 सुशांत सुप्रिय

उन दिनों एक मिशन के तहत हम दोनों को शहर के बाहर एक बंगले में रखा गया था - मुझे और मेरे सहयोगी अजय को। दोपहर में सुनीता नाम की बाई आती थी और वह दोपहर और शाम - दोनों समय का खाना एक ही बार में बना जाती थी। उसे और झाड़ू-पोंछे वाली बाई रमा को ख़ुद करकरे साहब ने यहाँ काम पर रखा था। हम लोग केवल करकरे साहब को जानते थे। उन्होंने ही हमें इस मिशन को पूरा करने का काम सौंपा था।

जवानी में मुझ पर देशभक्ति का जुनून सवार था। मैं सेना में भर्ती हो गया और उनकी ‘मिलिट्री इंटेलीजेंस विंग‘ में काम करने लगा था। हालाँकि बाद में मैंने वह नौकरी छोड़ दी। लेकिन करकरे साहब मुझे उसी समय से जानते थे। उनके कई अहसान थे मुझ पर। इसलिए जब उन्होंने अजय के साथ मेरी टीम बनाई और हमें मिशन के काम पर लगा दिया तो मैं उन्हें ‘ना‘ नहीं कह सका। अजय की कहानी भी मेरे जैसी थी। वह सेना में कमांडो और न जाने क्या-क्या रह चुका था। वैसे भी जिस नेता की हत्या करनी थी वह बहुत ही भ्रष्ट था और उसके बारे में शक था कि वह देशद्रोही ताक़तों से मिला हुआ था। लेकिन ठोस सबूत के अभाव में उस पर क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती थी। मेरा काम केवल गाड़ी चलाना था। टार्गेट पर गोली चलाने का काम अजय का था। हमें इस काम के बदले में मोटी रक़म मिलनी थी।

शहर के बाहर जिस बंगले में हमें ठहराया गया था, उसके आस-पास अक्सर एक कुतिया घूमती रहती थी। मुझे जीव-जंतुओं से प्यार था। इसलिए शुरू-शुरू में मैं उसे बचा-खुचा खाना डाल देता था। एक दिन उसकी कातर दृष्टि और बेतहाशा हिलती पूँछ को देखकर मैंने उसे मकान के भीतर ले आने का फ़ैसला कर लिया। मैंने उसे बंगले के गैरेज में रख लिया। वहीं उसके बैठने / लेटने के लिए मैंने कुछ फटे-पुराने गद्दे डाल दिए। सुबह-दोपहर-शाम में मैं उसे खाना डाल देता। उसकी आँखों में कृतज्ञता का भाव देखकर मुझे अच्छा लगता था।

अभी हमें बंगले में आए कुछ ही दिन हुए थे। एक दिन मैं कुतिया को खाना डालने गया तो हैरान रह गया। कुतिया के बैठने की जगह पर छह छोटे-छोटे अंडे पड़े हुए थे। ये अंडे कहाँ से आए? किसी कुतिया ने अंडे दिए हों, ऐसा तो मैंने कभी नहीं सुना था। मैंने वे अंडे वहाँ से हटाने चाहे तो कुतिया ऐसे गुर्राने लगी जैसे वे अंडे न हों, उसके नवजात पिल्ले हों। हार कर मैंने अंडे वहीं छोड़ दिए।

मैंने अपने साथी अजय को कुतिया के अंडों के बारे में बताया तो वह बेतहाशा हँसने लगा। कुतिया भी कहीं अंडे देती है? यह ज़रूर किसी की साज़िश होगी - उसने कहा। मैंने उन अंडों के बारे में दोनों बाइयों रमा और सुनीता से भी पूछा पर उन्होंने भी इस बात पर हैरानी जताई । उनकी अनभिज्ञता ने इस रहस्य को और गहरा कर दिया।

मैं सुबह सो कर उठता तो गोपाल को सोता हुआ पाता। मैं अपने लिए रसोई में ब्रेड-आमलेट बना कर नाश्ता कर लेता। कुछ खाना कुतिया को डाल आता। अजय देर रात तक इंटरनेट, व्हाट्स-ऐप, फ़ेसबुक और ट्विटर पर व्यस्त रहता था। उसके फ़ेसबुक पर 5000 मित्र थे पर इनमें से अधिकांश इन-ऐक्टिव थे जिन्हें अजय जानता भी नहीं था। करकरे साहब नहीं चाहते थे कि मिशन के दिनों में हम सोशल मीडिया पर ज़्यादा ऐक्टिव रहें। वे हमें इस दौरान ‘लो-प्रोफ़ाइल‘ रहने की सलाह देते थे। पर अजय पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ था।

जिस बंगले में हम ठहराए गए थे वहाँ के एक बड़े हॉल में एक लाइब्रेरी थी, जिसमें दुनिया-जहान की किताबें रखी हुई थीं। अक्सर मैं अपनी बोरियत दूर करने के लिए कुत्तों या अन्य जीव-जंतुओं के बारे में लिखी किताबें उठा कर ले आता और पढ़ता रहता।

इधर मैं महसूस करने लगा था कि आज-कल चारों ओर सब उल्टा-पुल्टा हो रहा था। हम दोनों सेना के भूतपूर्व अधिकारी थे। लेकिन हमें एक राजनीतिक हत्या को अंजाम देने का काम सौंपा गया था जो गैर-क़ानूनी था। हाल ही में अख़बारों में गाँधीवादी माने जाने वाले एक बड़े आदमी की असलियत का भांडा-फोड़ हो गया था। दरअसल वह पर्दे के पीछे एक चरमपंथी दक्षिणपंथी संगठन का सक्रिय सदस्य था लेकिन गाँधीवाद का मुखौटा लगा कर वह जनता को बेवक़ूफ़ बना रहा था ।

एक दिन मैं सुबह उठा तो आकाश से मरे हुए पक्षियों की बारिश होने लगी। अगली सुबह मैंने अख़बार में पढ़ा कि कल ही विदेश में कहीं मरी हुई मछलियों की बरसात हुई थी। यह सब देख-पढ़ कर किसी अनिष्ट की आशंका से मेरा माथा चकराने लगता। एक दिन भरी दोपहरी में अँधेरा-सा छा गया। अगले दिन यह ख़बर आई कि भरी गर्मी में देश के किसी राज्य में बर्फ़बारी हो गई। अमावस की रात में भी कभी-कभी मुझे आकाश में सितारे नज़र नहीं आते। जब मैं आईने में देखता तो मुझे ऐसा लगता जैसे मेरी परछाईं अपना मुँह मोड़ लेना चाहती हो। उधर वह कुतिया उन अंडों को ऐसे से रही थी जैसे वह कोई पक्षी हो और उन अंडों में से उसके पिल्ले निकलेंगे। ऐसे समय में देश में होने वाले आम चुनाव के नतीजे आ गए और एक ग़ैर-धर्म-निरपेक्ष सरकार चुनाव जीत गई। दुनिया जैसे किसी मकड़ी का जाला बन गई थी। कलयुग शायद इसी को कहते थे।

अजय को उस कुतिया से चिढ़ थी। आए दिन वह कहता रहता - "कुतिया भी कहीं अंडे देती है! यह तो वैसे ही हुआ जैसे किसी मुर्ग़ी ने पिल्ले दे दिए हों। यह कुतिया नहीं, भूतनी है, भूतनी। भगाओ इसे यहाँ से। "पता नहीं क्यों, सब कुछ उल्टा-पुल्टा होने वाले इस युग में मुझे कुतिया के अंडे देने वाली बात अस्वाभाविक होते हुए भी युग के अनुकूल ही लग रही थी।

नियत दिन से एक दिन पहले करकरे साहब हमसे मिलने शाम को हमारे बंगले पर पहुँचे। हमें अपने टार्गेट से कल होने वाली मुलाक़ात की जगह और समय के बारे में ‘ब्रीफ़‘ किया गया। हमें दो रिवाल्वर और एक ए. के. 47 राइफ़ल और उसकी मैगज़ीन मुहैया कराई गई। कल के मिशन के लिए हमें काले शीशे वाली एक एस.यू.वी. गाड़ी टोयोटा फ़ॉर्च्यूनर भी उपलब्ध कराई गई। हत्या करने के बाद हमें नेशनल हाइवे से होते हुए राज्य से बाहर निकल जाना था, जहाँ हमारे छिपने का बंदोबस्त कर दिया गया था। करकरे साहब ने हमें पुलिस की चेकिंग से बचने के लिए फ़ेक आई.डी. कार्ड भी उपलब्ध करा दिए। गाड़ी पर नक़ली नंबर प्लेट लगा दिया गया था ताकि इसके मालिक का पता न लग सके ।

नियत दिन सारी तैयारी कर लेने के बाद हम दोनों सुबह दस बजे गाड़ी में जा बैठे । मैंने कुतिया और उसके अंडों को भी गाड़ी में रख लिया क्योंकि मुझे लगा कि हमारे जाने के बाद कहीं वह भूखी न मर जाए। हमारे हथियार हमारे साथ थे। जिस भ्रष्ट नेता की हत्या करनी थी वह सुबह ग्यारह बजे मंदिर चौक के पास वाले बजरंग बली के मंदिर में माथा टेकने आने वाला था। हमने सुबह साढ़े दस बजे से मंदिर के पास ‘पोज़िशन‘ ले ली। ग्यारह बज गए। फिर साढ़े ग्यारह बज गए। लेकिन हमारा टार्गेट मंदिर में माथा टेकने नहीं आया। करकरे साहब ने हमें फ़ोन पर उनसे बात करने से सख़्त मना किया हुआ था। लिहाज़ा हम उनसे सम्पर्क नहीं कर सकते थे।

जब बारह बज गए तो मैं गाड़ी से उतरा और स्थिति का मुआयना करने के लिए टहलता हुआ मंदिर तक गया। तभी मेरे पीछे एक ज़ोरदार धमाका हुआ। उस धमाके से मैं घायल हो कर नीचे गिर पड़ा। किसी तरह उठ कर जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो हमारी गाड़ी के पास गहरा काला धुआँ छाया हुआ था। धुआँ छँटने पर मैंने पाया कि सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो जाने वाले इस युग में दरअसल किसी ने हमारी ही गाड़ी के नीचे बम लगा कर उसे रिमोट टाइमर की मदद से उड़ा दिया था। ज़ाहिर है, अजय, वह कुतिया और उसके अंडे - सब उस धमाके में नष्ट हो गए ...

सुशांत सुप्रिय
A-5001
गौड़ ग्रीन सिटी
वैभव खंड
इंदिरापुरम्
ग़ाज़ियाबाद - 201014( उ. प्र. )
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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