प्यार !

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

प्यार! कौन सी वस्तु प्यार है? मुझे बता दो।
किस को करता कौन प्यार है ? यही दिखा दो।।

पृथ्वीतल पर भटक भटक समय गँवाया!
ढूँढा मैंने बहुत प्यार का पता न पाया ।।

यों खो कर के अपना हृदय, पाया मैंने बहुत दुख।
पर यह भी तो जाना नहीं, होता है क्या प्यार-सुख।।

-पं० रामचन्द्रजी शुक्ल
 (सरस्वती)

 

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश