जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 

लक्षण

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 अज्ञेय | Ajneya

आँसू से भरने पर आँखें
और चमकने लगती हैं।
सुरभित हो उठता समीर
जब कलियाँ झरने लगती हैं।

बढ़ जाता है सीमाओं से
जब तेरा यह मादक हास,
समझ तुरत जाता हूँ मैं--
'अब आया समय बिदा का पास।'

-अज्ञेय

 

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश