यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
 

कबीर वाणी

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 नरेंद्र शर्मा

हिन्दुअन की हिन्दुआई देखी
तुरकन की तुरकाई !
सदियों रहे साथ, पर दोनों
पानी तेल सरीखे ;
हम दोनों को एक दूसरे के
दुर्गुन ही दीखे !

घर-घर नगर-नगर में हमने
निर्दय अगन जलाई !

हम दोनों के नाम अलग
पर काम एक से, भाई !
यहाँ नाम का धरम, फिरी है
जिसके नाम दुहाई !
देवपुरुष की दुष्कर हत्या
हमने कर दिखलाई !

- पं. नरेंद्र शर्मा [ 7-2-1948, बम्बई ]

 

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