भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
 

चायवाला

 (कथा-कहानी) 
 
रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

गंगाधरन पहली बार भारत आया था। भारतीय मूल का होने के कारण उसकी भारत में काफी दिलचस्पी थी और वह भारत के बारे में और अधिक जानने के इरादे से ही इस बार छुट्टियों में भारत आ पहुंचा और देहली के किसी पांच सितारा होटल में जा ठहरा था।

पांच सितारा होटल में हर बार अंदर जाते हुए या बाहर आते वक्त दरबान उसे जोर से सल्यूट लगा कर "गुड मार्निंग सर / गुड इवनिंग सर" करता था और गंगाधरन पाश्चात्य तौर-तरीक़ों के मुताबिक दरबान को ‘टिप्प' दे देता था। किसी रेस्तोरां में जाता तो वहां भी खाने के बाद वेटर को ‘टिप' देना नहीं भूलता था। कहीं भी शोपिंग करता तो थोड़े बहुत बकाया की परवाह किए बिना ही उन्हें ‘कीप दा चेंज' कहकर आगे बढ़ जाता।
होटल की तीसरी मंजिल के अपने कमरे से कभी बाहर झांकता तो शानदार होटल के लॉन, स्विमिंग पुल इत्यादि के बाद उसकी नजर ठीक सामने वाली झोपड़-पट्टी पर अटक जाती।
‘ये बस्ती यहाँ नहीं होनी चाहिए, इससे 'व्यू' का मजा किरकरा हो जाता है।' कई बार ऐसा सोचता था।

अपनी छुट्टियों का पूरा मजा ले रहा था वह। एक से एक बढ़िया रेस्टोरैंट में खाना खा रहा था। पंडारा रोड मार्किट के रेस्तोरां गंगाधरन को प्रिय हो गए थे।

आज जाने क्यों उसके दिल में आया कि कार रूकवाकर सड़क के किनारे के एक खोखे पर चाय पी जाये। ‘यहाँ रोक लो तो चाय पी लें।' उसने सड़क के किनारे वाले एक खोखे की ओर संकेत करते हुए ड्राइवर से कहा।
‘सर यहाँ?' ड्राइवर ने आश्चर्य प्रकट किया।

‘हाँ यहीं।'

कार रूक गई। ‘दो चाय।'

‘नहीं, सरजी! आप लीजिए, मैं तो अभी पी कर आया हूँ।'

"साब के लिए एक अच्छी-सी चाय बनाओं, भाई ।" कहकर ड्राइवर कार में जा बैठा।

ड्राइवर को शायद ऐसी जगह चाय पीने में थोड़ी हिचकिचाहट महसूस हो रही थी। वो कोई आम ड्राइवर तो था नहीं। वो ठहरा इंडिया टूर वालों का ड्राइवर। वो ‘मिनिरल वाटर' पीने वाले विदेशियों को भारत घुमाया करता था और उनके साथ अच्छी जगहों पर चाय-पानी पीने का शौक रखता था।

चाय पीने के बाद गंगाधरन ने सौ का नोट दीन-हीन से दिखाई देने वाले उस खोखे वाले को थमा दिया। खोखे वाला जब तक बाकी पैसे लेकर आता उससे पहले ही वो, ‘कीप दा चेंज' कहते हुए आगे बढ़ गया।
‘साब आपकी चेंज' खोखे वाला लगभग उसके पीछे भागता हुआ जोर से उसे आवाज लगा रहा था।

उसने पीछे मुड़े बिना, अपना हाथ इस अंदाज में हिलाया कि इसे रख लो।

खोखे वाला भागता हुआ अचानक उसके आगे आ खड़ा हुआ, ‘सर आपकी चेंज।'

‘तुम रख लो।'

खोखे वाले ने बढ़कर उसके हाथ में बकाया रेज़गारी थमाते हुए कहा, ‘बेटा हम मेहनत करके पैसा कमाते हैं। यूँ रेज़गारी रखकर अपने को शर्मिंदा नहीं करते। रेज़गारी लेनी होती तो सड़क पर बैठ भीख मांग रहे होते, चाय न बनाते यहाँ !‘ ...और चायवाला उसके हाथ में रेज़गारी रख, उसकी मुट्ठी बंद करके चला गया।

'गो तो होटल' उसने ड्राईवर से कहा और हक्का-बक्का अपनी कार में 'धम्म' से बैठ गया।

होटल आ गया था। दरबान ने गर्म जोशी से सलाम ठोका और टिप्प' पाने की अपेक्षा से उसकी ओर देखा।' गंगाधरन को दरबान जैसे नज़र ही नहीं आया वह अब भी उस चायवाले के बारे में सोच रहा था।

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

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