मेरे देश की माटी सोना | गीत

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना,
जागो भैया भारतवासी, मेरी है ये कामना।
दिन तो दिन है रातों को भी थोड़ा-थोड़ा जागना,
माता के आँचल पर भैया, आने पावे आँच ना।

अमर धरा के वीर सपूतो, भारत माँ की शान तुम,
माता के नयनों के तारे सपनों के अरमान तुम।
तुम हो वीर शिवा के वंशज आजादी के गान हो,
पौरुष की हो खान अरे तुम हनुमत से अनजान हो।

तुमको है आशीष राम का, रावण पास न आये,
अमर प्रेम हो उर में इतना, भागे भय से वासना।
मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना।

आज देश का वैभव रोता, मरु के नयनों में पानी है,
मानवता रोती है दर-दर, उसकी भी यही कहानी है।
उठ कर गले लगा लो तुम, विश्वास स्वयं ही सम्हलेगा,
तुम बदलो भूगोल जरा, इतिहास स्वयं ही बदलेगा।

आड़ी-तिरछी मेंट लकीरें, नक्शा साफ बनाओ,
एक देश हो, एक वेश हो, धरती कभी न बाँटना।
मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना।

गैरों का कंचन माटी है, मेरे देश की माटी सोना,
माटी मिल जाती माटी में, रह जाता है रोना।
माटी की खातिर मर मिटना माँगों को सूनी कर देना,
आँसू पी-पी सीखा हमने, बीज शान्ति के बोना।

कौन रहा धरती पर भैया, किस के साथ गई है,
दो पल का है रैन बसेरा, फिर हम सबको भागना।
मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना।

हम धरती के लाल और यह हम सब का आवास है,
हम सब की हरियाली घरती, हम सब का आकाश है।
क्या हिन्दू, क्या रूसी चीनी, क्या इंग्लिश अफगान,
एक खून है सब का भैया, एक सभी की साँस है।

उर को बना विशाल, प्रेम का पावन दीप जलाओ,
सीमाओं को बना असीमित, अन्तःकरण सँवारना।
मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना।
जागो भैया भारतवासी, मेरी है ये कामना।

-आनन्द विश्वास

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश