भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
 

पूत पूत, चुप चुप

 (कथा-कहानी) 
 
रचनाकार:

 रामनरेश त्रिपाठी

मेरे मकान के पिछवाड़े एक झुरमुट में महोख नाम के पक्षी का एक जोड़ा रहता हैं । महोख की आँखें तेज़ रोशनी को नहीं सह सकतीं, इससे यह पक्षी ज्यादातर रात में और शाम को या सबेरे जब रोशनी की चमक धीमी रहती है, अपने खाने की खोज में निकलता है। चुगते-चुगते जब नर और मादा दूर-दूर पड़ जाते हैं, तब एक खास तरह की बोली बोलकर जो पूत पूत ! या चुप चुप ! जैसी लगती है, एक दूसरे को अपना पता देते हैं, या बुलाते हैं। इनकी बोली की एक बहुत ही सुन्दर कहानी गांवों में प्रचलित हैं। वह यह है--

कहा जाता है कि जब महोख के पहला लड़का पैदा हुआ और वह सयाना हुआ, तब एक दिन उसके माता-पिता ने महुवे के बहुत से फूल जमा किए और बेटे को उसकी रखवाली पर बैठा दिया। महुवे के फूल सूखकर कम हो गए। शाम को मातापिता घर आए, उन्होंने फूलों को तौला तो कम पाया और यह शक किया कि बेटे ने फूल खा लिए, मारे क्रोध के उन्होंने बेटे को मारते-मारते मार ही डाला। दूसरे दिन उन्होंने फिर बहुत से फूल बटोरे। वे भी सूखने पर कम हो गए, तब मातापिता को अपनी भूल मालूम हुई और वे पछताने लगे। तब से शर्म के मारे उन्होंने दिन में बाहर निकलना ही छोड़ दिया। अब जब कभी और प्रायः रोज ही माँ को अपने पहले बेटे की याद आती, तब वह पूत-पूत करके रो उठती है। उसे सुन कर बाप तत्काल कहता है--चुप, चुप। अर्थात याद दिलाकर दुखी मत कर या अपनी मूर्खता की बात कोई दूसरा जान न ले।

है तो यह छोटी-सी कहानी, पर क्रोध के आवेश में आकर अन्याय कर डालने वालों के लिए बड़ी उपदेशजनक भी है। क्रोध की ऐसी कितनी ही घटनाओं का परिणाम भी महोख से मिलता-जुलता-सा ही होता है।

- पंडित रामनरेश त्रिपाठी

 

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश