देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

इसको ख़ुदा बनाकर | ग़ज़ल

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 विजय कुमार सिंघल

इसको ख़ुदा बनाकर उसको खुदा बनाकर 
क्यों लोग चल रहे हैं बैसाखियां लगाकर

दो टूक बात कहना आदत-सी हो गई है
हम उनसे बात करते कैसे घुमा-फिराकर

चेहरों का एक जमघट आंखों के सामने है
हम कैसे भाग जाएं सबसे नज़र बचाकर

जो तुझ को देके गाली हरदम पुकारता है
कहता है कौन तुझसे उसके लिए दुआ कर

बाहर की रोशनी तो बाहर की रोशनी है
रोशन तू अपने अंदर एहसास का दिया कर

-विजय कुमार सिंघल

 

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