मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
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इसको ख़ुदा बनाकर उसको खुदा बनाकर क्यों लोग चल रहे हैं बैसाखियां लगाकर
दो टूक बात कहना आदत-सी हो गई है हम उनसे बात करते कैसे घुमा-फिराकर
चेहरों का एक जमघट आंखों के सामने है हम कैसे भाग जाएं सबसे नज़र बचाकर
जो तुझ को देके गाली हरदम पुकारता है कहता है कौन तुझसे उसके लिए दुआ कर
बाहर की रोशनी तो बाहर की रोशनी है रोशन तू अपने अंदर एहसास का दिया कर
-विजय कुमार सिंघल
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