देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

कंकड चुनचुन

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 कबीरदास | Kabirdas

कंकड चुनचुन महल उठाया
        लोग कहें घर मेरा। 
ना घर मेरा ना घर तेरा
        चिड़िया रैन बसेरा है॥

जग में राम भजा सो जीता ।
        कब सेवरी कासी को धाई 
कब पढ़ि आई गीता ।
        जूठे फल सेवरी के खाये  
तनिक लाज नहिं कीता ॥ 

- कबीर 

 

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