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मार्च-अप्रैल 2024
सदैव की भांति इस अंक में भी 'कथा-कहानी' के अंतर्गत कहानियाँ, लघु-कथाएं व बाल कथाएं प्रकाशित की गई हैं। इस अंक के काव्य में सम्मिलित है - कविताएं, दोहे, बाल-कविताएं, हास्य कविताएं व गज़ल।
मार्च-अप्रैल अंक आपको भेंट।
इस अंक की कहानियों में प्रेमचंद की कहानी 'होली का उपहार', विश्वंभरनाथ कौशिक की 'पत्रकार', सुभद्रा कुमारी चौहान की 'होली', हरिवंश राय बचन की 'हृदय की आँखें' और माधवी श्रीवास्तवा की 'महारानी का जीवन' सम्मिलित की गई है।
23 मार्च 'भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू' का बलिदान-दिवस होता है। उन्हीं की समृति में यहां शहीदी-दिवस को समर्पित विशेष समग्री प्रकाशित की गई है।
लघुकथाओं में इस बार असग़र वजाहत की लघुकथा,'चार हाथ', सतीशराज पुष्करणा की लघुकथा, 'सहजता की ओर', रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' की 'सपने और सपने', और जसबीर चावला की लघुकथा 'भिखमंगे' प्रकाशित की हैं।
लोक-कथाओं में भारत की लोक-कथा 'बोझा' और न्यूज़ीलैंड की लोक-कथा, 'टैटू कैसे शुरू हुए' पढ़ें। इनके अतिरिक्त होली की पौराणिक कथाएँ पढ़ें।
रोचक सामग्री के अंतर्गत इस बार 'होली से मिलते जुलते त्योहार' पढ़ें। इसके अतिरिक्त 'माओरी कहावतें' पठनीय हैं। माओरी न्यूज़ीलैंड के मूल निवासी हैं। इनकी माओरी भाषा की कहावतों का हिन्दी भावानुवाद उपलब्ध करवाया गया है।
इस बार दोहों में गयाप्रसाद शुक्ल सनेही, प्रो. राजेश कुमार और डॉ सुशील कुमार के दोहे पढ़िए।
कविताओं में मैथिलीशरण गुप्त की, 'होली', जयशंकर प्रसाद की, 'होली की रात', गोपाल सिंह नेपाली की, 'बरस-बरस पर आती होली' सम्मिलित की गई हैं।
हास्यरस में जैमिनी हरियाणवी, काका हाथरसी, प्रदीप चौबे, अल्हड़ बिकनेरी और अरुण जैमिनी की हास्य रचनाएं पढ़ें।
ग़ज़लों में अडम गोंडवी, बलबीर सिंह रंग, अश्वघोष, ज़हीर कुरैशी, पंकज गिरीश, डॉ श्याम सखा श्याम, शुभम् जैन और देवी नागरानी की ग़ज़लें पढ़ें।
बाल साहित्य में बच्चों की कविताएं, बच्चों की कहानियाँ व पंचतंत्र की कहानी प्रकाशित की गई हैं।
व्यंग्य में इस बार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य 'कबिरा आप ठगाइए' और डॉ सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त' का व्यंग्य, 'कचरा लेखन' पढ़ें।
इस बार गीतों में केदारनाथ अग्रवाल, आरसी प्रसाद सिंह, केदारनाथ सिंह, मन्नूलाल द्विवेदी शील के गीत पढ़िए।
आलेखों में मुक्तिबोध का आलेख, 'जनता का साहित्य किसे कहते हैं', प्रभाष जोशी का आलेख 'लिखी कागद कारे किए', प्रो. राजेश कुमार का आलेख, 'हिन्दी में उर्दू शब्दों का इस्तेमाल' और आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी, 'बनवासी रामजी की शैय्या' पढ़ें।
भारत-दर्शन का सम्पूर्ण अंक पढ़ें।
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शुक्रवार व्रतकथा | Shukrwar Katha
एक बुढिया थी।उसका एक ही पुत्र था। बुढिया पुत्र के विवाह के बाद ब से घर के सारे काम करवाती, परंतु उसे ठीक से खाना ...