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विविध, Hindi MiscellaneousArticle Under This Catagory
छोटा बड़ा - प्रेमनारायण टंडन |
एक विशाल वृक्ष की छाया से हटकर मैं खड़ा था और मेरे हाथ में एक सुंदर, छोटा आईना था । |
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अपनी-अपनी बीमारी - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai |
हम उनके पास चंदा माँगने गए थे। चंदे के पुराने अभ्यासी का चेहरा बोलता है। वे हमें भाँप गए। हम भी उन्हें भाँप गए। चंदा माँगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी पहचानते हैं। लेनेवाला गंध से जान लेता है कि यह देगा या नहीं। देनेवाला भी माँगनेवाले के शरीर की गंध से समझ लेता है कि यह बिना लिए टल जाएगा या नहीं। हमें बैठते ही समझ में आ गया कि ये नहीं देंगे। वे भी शायद समझ गए कि ये टल जाएँगे। फिर भी हम दोनों पक्षों को अपना कर्तव्य तो निभाना ही था। हमने प्रार्थना की तो वे बोले-आपको चंदे की पड़ी है, हम तो टैक्सों के मारे मर रहे हैं। |
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ठिठुरता हुआ गणतंत्र - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai |
चार बार मैं गणतंत्र-दिवस का जलसा दिल्ली में देख चुका हूँ। पाँचवीं बार देखने का साहस नहीं। आखिर यह क्या बात है कि हर बार जब मैं गणतंत्र-समारोह देखता, तब मौसम बड़ा क्रूर रहता। छब्बीस जनवरी के पहले ऊपर बर्फ पड़ जाती है। शीत-लहर आती है, बादल छा जाते हैं, बूँदाबाँदी होती है और सूर्य छिप जाता है। जैसे दिल्ली की अपनी कोई अर्थनीति नहीं है, वैसे ही अपना मौसम भी नहीं है। अर्थनीति जैसे डॉलर, पौंड, रुपया, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा-कोष या भारत सहायता क्लब से तय होती है, वैसे ही दिल्ली का मौसम कश्मीर, सिक्किम, राजस्थान आदि तय करते हैं। |
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भारत व ऑस्ट्रेलिया पर गूगल डूडल - रोहित कुमार हैप्पी |
26 जनवरी पर भारत व ऑस्ट्रेलिया पर गूगल डूडल26 जनवरी 2019: आज गूगल ने अपना डूडल भारत व आस्ट्रेलिया को समर्पित किया है। भारत का आज गणतंत्र-दिवस है व ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय-दिवस है। |
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गांधीजी का अंतिम दिन - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
30 जनवरी 1948 का दिन गांधीजी के लिए हमेशा की तरह व्यस्तता से भरा था। प्रात: 3.30 को उठकर उन्होंने अपने साथियों मनु बेन, आभा बेन और बृजकृष्ण को उठाया। दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर 3.45 बजे प्रार्थना में लीन हुए। घने अंधकार और कँपकँपाने वाली ठंड के बीच उन्होंने कार्य शुरू किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दस्तावेज को पुन: पढ़कर उसमें उचित संशोधन कर कार्य पूर्ण किया। |
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अद्भुत संवाद - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra |
"ए, जरा हमारा घोड़ा तो पकड़े रहो।" |
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गांधी को श्रद्धांजलि - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
30 जनवरी 1948 के सूर्यास्त के साथ पंडित नेहरु को लगा कि हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है। चारों ओर अंधकार व्याप्त है लेकिन दूसरे ही क्षण सत्य प्रकट हुआ और नेहरु ने कहा "मेरा कहना गलत है, हजारों वर्षों के अंत होने तक यह प्रकाश दिखता ही रहेगा और अनगिनत लोगों को सांत्वना देता रहेगा।" |
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