जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 

लघुकथाएं

लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँप्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें।

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चार हाथ  - असग़र वजाहत

एक मिल मालिक के दिमाग़ में अजीब-अजीब ख़याल आया करते थे जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा, सारे लोग मज़दूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीज़ों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे, तब मज़दूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, वग़ैरा-वग़ैरा। एक दिन उसके दिमाग़ में ख़याल आया कि अगर मज़दूरों के चार हाथ हो तो काम कितनी तेज़ी से हो और मुनाफ़ा कितना ज़्यादा। लेकिन यह काम करेगा कौन? उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे, ये हैं किस मर्ज़ की दवा? उसने यह काम करने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख़्वाहों पर नौकर रखा और वे नौकर हो गए। कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ। मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज़ हो गया। उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और अपने आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया।

 
सहजता की ओर - डॉ सतीशराज पुष्करणा

जीवन के साठ वर्ष साहित्य को समर्पित कर देने के पश्चात् जब उन्होंने स्वयं इन साठ वर्षों का मूल्यांकन तटस्थ भाव से किया तो वह दुखी हो उठे।

 
सपने और सपने - रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

तीनों बच्चे रेत के घरोंदे बनाकर खेल रहे थे कि सेठ गणेशीलाल का बेटा बोला, "रात मुझे बहुत अच्छा सपना आया था।"

 
भिखमंगे - जसबीर चावला

भिखमंगा एक आलीशान महल के द्वार पर पहुंचा। अंदर एक और भिखमंगा था। पहले ने उसे देखकर हथेली फैलायी, दूसरे ने जवाब में झोली फैला दी।

 

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