परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
 

ग़ज़लें

ग़ज़ल क्या है? यह आलेख उनके लिये विशेष रूप से सहायक होगा जिनका ग़ज़ल से परिचय सिर्फ पढ़ने सुनने तक ही रहा है, इसकी विधा से नहीं। इस आधार आलेख में जो शब्‍द आपको नये लगें उनके लिये आप ई-मेल अथवा टिप्‍पणी के माध्‍यम से पृथक से प्रश्‍न कर सकते हैं लेकिन उचित होगा कि उसके पहले पूरा आलेख पढ़ लें; अधिकाँश उत्‍तर यहीं मिल जायेंगे। एक अच्‍छी परिपूर्ण ग़ज़ल कहने के लिये ग़ज़ल की कुछ आधार बातें समझना जरूरी है। जो संक्षिप्‍त में निम्‍नानुसार हैं: ग़ज़ल- एक पूर्ण ग़ज़ल में मत्‍ला, मक्‍ता और 5 से 11 शेर (बहुवचन अशआर) प्रचलन में ही हैं। यहॉं यह भी समझ लेना जरूरी है कि यदि किसी ग़ज़ल में सभी शेर एक ही विषय की निरंतरता रखते हों तो एक विशेष प्रकार की ग़ज़ल बनती है जिसे मुसल्‍सल ग़ज़ल कहते हैं हालॉंकि प्रचलन गैर-मुसल्‍सल ग़ज़ल का ही अधिक है जिसमें हर शेर स्‍वतंत्र विषय पर होता है। ग़ज़ल का एक वर्गीकरण और होता है मुरद्दफ़ या गैर मुरद्दफ़। जिस ग़ज़ल में रदीफ़ हो उसे मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं अन्‍यथा गैर मुरद्दफ़।

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पहले जनाब कोई... - अदम गोंडवी

पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दो
फिर कर का बोझ क़ौम की गर्दन पर डाल दो

 
अभी होली दिवाली | ग़ज़ल - शुभम् जैन

अभी होली दिवाली साथ में रमज़ान देखा है,
तराशा हुस्न का नायाब वो एवान देखा है।।

हवाओं से चिरागों को बचाना और होता है,
घरों को तोड़ देता है कभी तूफ़ान देखा है?

सुने मैंने सभी किस्से अभी उम्मीद है बाकी,
अभी जिंदा ज़माने में वफ़ा ईमान देखा है।।

किताबों में न हो मौजूद वो नाकामियाँ मेरी,
मुझे देखो,कभी हारा हुआ इंसान देखा है?

'शुभम्' वो रोज़ आते थे कभी मेरी भी गलियों में,
यहाँ थी रौशनी तुमने जिसे वीरान देखा है।।

 
मन में रहे उमंग तो समझो होली है | ग़ज़ल - गिरीश पंकज

मन में रहे उमंग तो समझो होली है
जीवन में हो रंग तो समझो होली है

 
हर कोई है मस्ती का हकदार सखा होली में  - डॉ. श्याम सखा श्याम

हर कोई है मस्ती का हकदार सखा होली में
मौसम करता रंगो की बौछार सखा होली में

 
ज़माना आ गया... - बलबीर सिंह रंग

ज़माना आ गया रुसवा‌इयों तक तुम नहीं आये
जवानी आ ग‌ई तन्हा‌इयों तक तुम नहीं आये

 
एक गहरा दर्द... | ग़ज़ल - अश्वघोष

एक गहरा दर्द पलता जा रहा है
आदमी का दम निकलता जा रहा है

 
किस्से नहीं हैं ये किसी... -  ज़हीर कुरेशी

किस्से नहीं हैं ये किसी 'राँझे' की 'हीर' के
ये शेर हैं-- अँधेरों से लड़ते 'ज़हीर' के

 
हमें अपनी हिंदी... | ग़ज़ल - देवी नागरानी

हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये
सुनाए जो लोरी वो माँ चाहिये

कहा किसने सारा जहाँ चाहिये
हमें सिर्फ़ हिन्दोस्ताँ चाहिये

 

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