मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। - चंद्रबली पांडेय।
 
कुंडलिया 
 
कुंडलिया मात्रिक छंद है। दो दोहों के बीच एक रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है। आदि में एक दोहा तत्पश्चात् रोला छंद जोड़कर इसमें कुल छह पद होते है। प्रत्येक पद में 24 मात्राएं होती हैं व आदि अंत का पद एक सा मिलता है। पहले दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द से कुंडलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुंडलिया समाप्त भी होती है।
 
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कबीर की कुंडलियां - 1  - कबीरदास | Kabirdas

गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पांय
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो दिखाय
गोविन्द दियो दिखाय ज्ञान का है भण्डारा
सत मारग पर पांव अपन गुरु ही ने डारा
गोबिन्द लियो बिठाय हिये खुद गुरु के चरनन
माथा दीन्हा टेक कियो कुल जीवन अर्पन

 
त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया   - त्रिलोक सिंह ठकुरेला

कुण्डलिया 

 
कबीर की कुंडलियां  - कबीरदास | Kabirdas

कबीर ने कुंडलियां भी कही हों इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता लेकिन कबीर की कुंडलियां भी प्रचलित हैं। ये कुंडलियां शायद उनके प्रशंसकों या उनके शिष्यों ने कबीर की साखियों को आधार बना लिखी हों। यदि आपके पास इसकी और जानकारी हो या आपने इसपर शोध किया हो तो कृपया जानकारी साझा करें।

 
हिंदी की दुर्दशा | हिंदी की दुर्दशा | कुंडलियाँ  - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य।
सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य।।
है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-
बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा।।
कहँ ‘काका', जो ऐश कर रहे रजधानी में।
नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में।।

 
हिंदी-प्रेम  - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

हिंदी-हिंदू-हिंद का, जिनकी रग में रक्त
सत्ता पाकर हो गए, अँगरेज़ी के भक्त
अँगरेज़ी के भक्त, कहाँ तक करें बड़ाई
मुँह पर हिंदी-प्रेम, ह्रदय में अँगरेज़ी छाई
शुभ चिंतक श्रीमान, राष्ट्रभाषा के सच्चे
‘कानवेण्ट' में दाख़िल करा दिए हैं बच्चे

 
काका हाथरसी की कुंडलियाँ  - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ।
कागज़ का कोटा झपट, करें एक के आठ।।
करें एक के आठ, चल रही आपाधापी ।
दस हज़ार बताएं, छपें ढाई सौ कापी ।।
विज्ञापन दे दो तो, जय-जयकार कराएं।
मना करो तो उल्टी-सीधी न्यूज़ छपाएं ।।

 
राष्ट्रीय एकता  - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

कितना भी हल्ला करे, उग्रवाद उदंड,
खंड-खंड होगा नहीं, मेरा देश अखंड।
मेरा देश अखंड, भारती भाई-भाई,
हिंदू-मुस्लिम-सिक्ख-पारसी या ईसाई।
दो-दो आँखें मिलीं प्रकृति माता से सबको,
तीन आँख वाला कोई दिखलादो हमको।

 
गूंजी हिन्दी  - Atal Bihari Vajpayee

गूंजी हिन्दी विश्व में, स्वप्न हुआ साकार;
राष्ट्र संघ के मंच से, हिन्दी का जयकार;
हिन्दी का जयकार, हिन्द हिन्दी में बोला;
देख स्वभाषा-प्रेम, विश्व अचरज से डोला;
कह कैदी कविराय, मेम की माया टूटी;
भारत माता धन्य, स्नेह की सरिता फूटी!

- अटल बिहारी वाजपेयी 
[कैदी कविराय की कुंडलियाँ]

 

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