प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
 
गीत 
 

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

भारत भूषण ने कहा है,"मनुष्य के आँसू कविता बनते हैं परंतु जब कविता का मन उदास हो जाए, वह क्षण गीत के जन्म का क्षण होता है।"

भारत भूषण कहते हैं:

"जब नींद न आई और न जाग सका,
बेचैनी की कुछ दवा न माँग सका,
दम घुटा, नयन का कोना गरम हुआ
तब तब मेरे गीतों का जन्म हुआ ।"

 
Literature Under This Category
 
श्रमिक का गीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

रहा हाड़ ना मास मेरा
जानूँ हूँ इतिहास तेरा।

हम धरती पर तंग हुए
देवलोक में वास तेरा।
          जानूँ हूँ इतिहास तेरा॥
 
खाऊँ, ओड़ूँ, इसे बिछौऊं
किया बड़ा विश्वास तेरा।
           जानूँ हूँ इतिहास तेरा॥

जो चाहे तू वो मैं बोलूँ
ना बंधुआ, ना दास तेरा।
           जानूँ हूँ इतिहास तेरा॥

'रोहित' सुन ले बात ध्यान से
वरना हो जाये नास तेरा।
        जानूँ हूँ इतिहास तेरा॥

 
धर्म निभा  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

कवि कलम का धर्म निभा
कलम छोड़ या सच बतला।

 
बढ़े चलो! बढ़े चलो!  - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi

न हाथ एक शस्त्र हो
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न, नीर, वस्त्र हो,
हटो नहीं,
डटो वहीं,
बढ़े चलो!
बढ़े चलो!

 
मौन ओढ़े हैं सभी | राजगोपाल सिंह का गीत  - राजगोपाल सिंह

मौन ओढ़े हैं सभी तैयारियाँ होंगी ज़रूर
राख के नीचे दबी चिंगारियाँ होंगी ज़रूर

 
गरमागरम थपेड़े लू के  - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है,
इतनी गरमी कभी न देखी, ऐसा पहली बार हुआ है।
नींबू - पानी, ठंडा - बंडा,
ठंडी बोतल डरी - डरी है।
चारों ओर बबंडर उठते,
आँधी चलती धूल भरी है।
नहीं भाड़ में सीरा भैया, भट्ठी-सा संसार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।
आते - जाते आतंकी से,
सब अपना मुँह ढ़ाँप रहे हैं।
बिजली आती-जाती रहती,
एसी, कूलर काँप रहे हैं।
शिमला नैनीताल चलें अब,मन में यही विचार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।
अभी सुना भू-कम्प हुआ है,
और सुनामी सागर तल पर।
दूर-दूर तक दिखे न राहत,
आफत की आहट है भू पर।
बन्द द्वार कर घर में बैठो, जीना ही दुश्वार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।
बादल फटा, बहे घर द्वारे,
नगर-नगर में पानी-पानी।
सृष्टि-सन्तुलन अस्त व्यस्त है,
ये सब कुछ अपनी नादानी।
मानव-मन पागल है कितना,समझाना बेकार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।

 
मिट्टी की महिमा  - शिवमंगल सिंह सुमन

निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी,
हर बार बिखेरी गई, किन्तु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी।

 
कलयुग में गर होते राम  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

अच्छे युग में हुए थे राम
कलयुग में गर होते राम
बहुत कठिन हो जाते काम!
गर दशरथ बनवास सुनाते
जाते राम, ना जाने जाते
दशरथ वहीं ढेर हो जाते।
कलयुग में गर होते राम, बहुत कठिन हो जाते काम!

 
दिन अच्छे आने वाले हैं  - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे,
हों दिन ज्यों-त्यों कर ढेल रहे, बाकी न किसी से मेल रहे,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

 
ग्रामवासिनी  - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड

भारत माता ग्रामवासिनी,
शस्य श्यामला सुखद सुहासिनी,

 
चाहता हूँ देश की....  - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं

 
जूठे पत्ते  - बालकृष्ण शर्मा नवीन | Balkrishan Sharma Navin

क्या देखा है तुमने नर को, नर के आगे हाथ पसारे?
क्या देखे हैं तुमने उसकी, आँखों में खारे फ़व्वारे?
देखे हैं? फिर भी कहते हो कि तुम नहीं हो विप्लवकारी?
तब तो तुम पत्थर हो, या महाभयंकर अत्याचारी।

 
जनतंत्र का जन्म  - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

 
मंदिर-दीप  - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi

मैं मंदिर का दीप तुम्हारा।
जैसे चाहो, इसे जलाओ,
जैसे चाहो, इसे बुझायो,

 
जो समर में हो गए अमर  - नरेंद्र शर्मा

जो समर में हो गए अमर, मैं उनकी याद में
गा रही हूँ आज श्रद्धा-गीत धन्यवाद में
जो समर में हो गए अमर ...

 
इक अनजाने देश में  - विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया

इक अनजाने देश में जब भी, मैं चुप हो रह जाता हूँ,
अपना मन उल्लास से भरने, देश तुझे ही गाता हूँ|
शुभ्र हिमालय सर हो मेरा,
सीना बन जाता विंध्याचल|
नीलगिरी घुटने बन जाते,
पैर तले तब नीला सागर|
दाएँ में कच्छ को भर लेता, बाएँ मिजो भर जाता हूँ,
अपना मन उल्लास से भरने,देश तुझे ही गाता हूँ|
श्वासों में तब तेरा समीरण,
धमनी में तेरा ही नद्जल|
आँखों में आकाश हो तेरा,
कानों में गाती फिर कोयल|
रोम मेरे पादप जाते, वन बन कर सज जाता हूँ,
अपना मन उल्लास से भरने, देश तुझे ही गाता हूँ|
स्मृति में मैं सब भर लेता,
तेरी थाती महिमा गौरव|
संत तपस्वी त्यागी ज्ञानी,
जिनसे जग में तेरा सौरभ|
मैं अपने मन श्रद्धा भरकर, हरपल शीश नवाता हूँ,
अपना मन उल्लास से भरने,देश तुझे ही गाता हूँ|

 
किसने बाँसुरी बजाई  - जानकी वल्लभ शास्त्री

जनम-जनम की पहचानी वह तान कहाँ से आई !
किसने बाँसुरी बजाई

 
पथ की बाधाओं के आगे | गीत  - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar

पथ की बाधाओं के आगे घुटने टेक दिए
अभी तो आधा पथ चले!
तुम्हें नाव से कहीं अधिक था बाहों पर विश्वास,
क्यों जल के बुलबुले देखकर गति हो गई उदास,
ज्वार मिलेंगे बड़े भंयकर कुछ आगे चलकर--
अभी तो तट के तले तले!
सीमाओं से बाँध नहीं पाता कोई मन को,
सभी दिशाओं में मुड़ना पड़ता है जीवन को,
हो सकता है रेखाओं पर चलना तुम्हें पड़े
अभी तो गलियों से निकले!
शीश पटकने से कम दुख का भार नहीं होगा,
आँसू से पीड़ा का उपसंहार नहीं होगा,
संभव है यौवन ही पानी बनकर बह जाए
अभी तो नयन-नयन पिघले!

 
चंद्रशेखर आज़ाद | गीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

शत्रुओं के प्राण उन्हें देख सूख जाते थे 
ज़िस्म जाते काँप, मुँह पीले पड़ जाते थे
                   देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

 
मैं अमर शहीदों का चारण  - श्रीकृष्ण सरल

मैं अमर शहीदों का चारण
उनके गुण गाया करता हूँ
जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है,
मैं उसे चुकाया करता हूँ।

 
भूमण्डलीय तापक्रम वृद्धि  - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड

प्रश्न चिन्ह? खतरा अत्यधिक,
जलप्रदूषण के खतरों से,
जीव जगत को बचावो,
पानी व्यर्थ न बहावो,
पानी है जीवनदाता,
पानी की हर बूँद बचाओ.

 
दूर गगन पर | गीत  - अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया

दूर गगन पर सँध्या की लाली
सतरंगी सपनों की चुनरी लहरायी
आँचल में भरकर तुझे ओ चंदा
चाँदनी बनकर मैं मुस्करायी
दूर गगन पर----

 
श्रम का वंदन | जन-गीत  - गिरीश पंकज

जिस समाज में श्रम का वंदन, केवल वही हमारा है।
आदर हो उन सब लोगों का, जिनने जगत सँवारा है।
होते न मजदूर जगत में, हम सिरजन ना कर पाते।
भवन, सड़क, तालाब, कुऍं कैसे इनको हम गढ़ पाते।
श्रमवीरों के बलबूते ही, अपना वैभव सारा है।
जिस समाज में श्रम का वंदन,केवल वही हमारा है।

 
टूटें न तार  - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal

टूटें न तार तने जीवन-सितार के।

 
मैं तटनी तरल तरंगा, मीठे जल की निर्मल गंगा  - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड

मैं तटनी तरल तरंगा
मीठे जल की निर्मल गंगा

 
आ जा सुर में सुर मिला  - विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया

आ जा सुर में सुर मिला ले, यह मेरा ही गीत है,
एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है।
सुर में सुर मिल जाए इतना, सुर अकेला न रहे,
मैं भी मेरा न रहूँ और, तू भी तेरा न रहे,
धड़कनों के साथ सजता, राग का संगीत है,
एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है।

 
सो गई है मनुजता की संवेदना  - डॉ. जगदीश व्योम

सो गई है मनुजता की संवेदना
गीत के रूप में भैरवी गाइए
गा न पाओ अगर जागरण के लिए
कारवाँ छोड़कर अपने घर जाइए

 
रात भर का वह गहरा अँधेरा  - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड

रात भर का वह गहरा अँधेरा,
गहन अवसाद था बहुतेरा,

 
फ़क़ीराना ठाठ | गीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

आ तुझको दिखाऊँ मैं अपने ठाठ फ़क़ीराना
फाकों से पेट भरना और फिर भी मुसकुराना। 
आ तुझको दिखाऊँ मैं--------

 
सुहाना सहाना लगे | गीत  - अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया

सुहाना सहाना लगे
यह मौसम, यह रिमझिम
यह सरगम, यह गुंजन
यादों के बीच चले जब बचपन
सुहाना सूहाना लगे यह मौसम यह रिमझिम

 
ये देश है विपदा में  - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक

देश हमारा है विपदा में, साथी तुम उठ जाओ।
सब कुछ न्यौछावर कर दो,
देशभक्ति मन में भर दो,
तूफ़ानों के इस रस्ते में, साथी गीत विजय के गाओ,
देश हमारा है विपदा में, साथी तुम उठ जाओ।

 
कब निकलेगा देश हमारा  - कुँअर बेचैन

पूछ रहीं सूखी अंतड़ियाँ
चेहरों की चिकनाई से !
कब निकलेगा देश हमारा निर्धनता की खाई से !!

 
हम दुनिया की शान  - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक

हिदुभूमि के निवासी, हम दुनिया की शान हैं।
रंग-रूप सब भिन्न-भिन्न पर
राष्ट्र मन सब एक हैं,
भाव सभी के एक सरीखे
भाषा चाहे अनेक हैं।
हम परहित न्यौछावर होकर जीवन देते दान हैं
हिदुभूमि के निवासी हम दुनिया की शान हैं।

 
तेरे नाम | गीत  - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया

जाने कितनी बातें लिख दीं तेरे नाम
इश्क में डूबीं रातें लिख दीं तेरे नाम

 
संक्रान्ति  - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti

सूनी सड़कों पर ये आवारा पाँव
माथे पर टूटे नक्षत्रों की छाँव
कब तक
आखिर कब तक ?

 
फागुन का गीत  - केदारनाथ सिंह

गीतों से भरे दिन फागुन के ये गाए जाने को जी करता!
ये बाँधे नहीं बँधते, बाँहें--
रह जातीं खुली की खुली,
ये तोले नहीं तुलते, इस पर
ये आँखें तुली की तुली,
ये कोयल के बोल उड़ा करते, इन्हें थामे हिया रहता!

 
तू, मत फिर मारा मारा  - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

निविड़ निशा के अन्धकार में
जलता है ध्रुव तारा
अरे मूर्ख मन दिशा भूल कर
मत फिर मारा मारा--
तू, मत फिर मारा मारा।

 
संकल्प-गीत  - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans

हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं।
कष्ट के बादल घिरें हम किंतु घबराते नहीं हैं
क्या पतंगे दीपज्वाला से लिपट जाते नहीं हैं?
फूल बनकर कंटकों में, मुस्कराते ही रहेंगे,
दुख उठाए हैं, उठाएंगे, उठाते ही रहेंगे।

 
संकल्प-गीत  - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans

हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं।
कष्ट के बादल घिरें हम किंतु घबराते नहीं हैं
क्या पतंगे दीपज्वाला से लिपट जाते नहीं हैं?
फूल बनकर कंटकों में, मुस्कराते ही रहेंगे,
दुख उठाए हैं, उठाएंगे, उठाते ही रहेंगे।

 
पीर  - डॉ सुधेश

हड्डियों में बस गई है पीर।

 
दर्द के बोल  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

उसको मन की क्या कहता मैं?
अपना भी मन भरा हुआ था।
इसकी-उसकी, ऐसी-वैसी,
जाने क्या-क्या धरा हुआ था!
उसको मन की क्या कहता मैं, अपना भी मन भरा हुआ था!

 
गोपालदास नीरज के गीत | जलाओ दीये | Neeraj Ke Geet  - गोपालदास ‘नीरज’

जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।

 
अब तो मजहब कोई | नीरज के गीत  - गोपालदास ‘नीरज’

अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए

 
जितना कम सामान रहेगा | नीरज का गीत  - गोपालदास ‘नीरज’

जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा

 
तुम दीवाली बनकर  - गोपालदास ‘नीरज’

तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा!

 
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ  - गोपालदास ‘नीरज’

दिए से मिटेगा न मन का अँधेरा,
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ !

 
मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा  - गोपालदास ‘नीरज’

मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा!

 
खिड़की बन्द कर दो  - गोपालदास ‘नीरज’

खिड़की बन्द कर दो
अब सही जाती नहीं यह निर्दयी बरसात-खिड़की बन्द कर दो।

 
जवानी के क्षण में | गीत  - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
कुछ जीने का आनन्द मिले
कुछ मरने का आनन्द मिले
दुनिया के सूने ऑगन में कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

 
मुझको याद किया जाएगा  - गोपालदास ‘नीरज’

आँसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जाएगा।

 
पीपल के पत्तों पर | गीत  - नागार्जुन | Nagarjuna

पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी
नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही
जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी
पिछवाड़े, बोतल के टुकड़ों पर---
चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी
दूर उधर, बुर्ज़ी पर उछल रही चाँदनी।

 
हमने कलम उठा नहीं रखी, गीत किसी के गाने को  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हमने कलम उठा नहीं रखी, गीत किसी के गाने को॥

 
मुट्ठी भर रंग अम्बर में  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

मुट्ठी भर रंग अम्बर में किसने है दे मारा
आज तिरंगा दीखता है अम्बर मोहे सारा

 
हंसों के वंशज | गीत  - राजगोपाल सिंह

हंसों के वंशज हैं लेकिन
कव्वों की कर रहे ग़ुलामी
यूँ अनमोल लम्हों की प्रतिदिन
होती देख रहे नीलामी
दर्पण जैसे निर्मल मन को
क्यों पत्थर के नाम कर दिया

 
सीते! मम् श्वास-सरित सीते  - राजगोपाल सिंह

सीते! मम् श्वास-सरित सीते
रीता जीवन कैसे बीते

 
मन की आँखें खोल  - सुदर्शन | Sudershan

बाबा, मन की आँखें खोल!
दुनिया क्या है खेल-तमाशा,
चार दिनों की झूठी आशा,
पल में तोला, पल में माशा,
ज्ञान-तराजू लेके हाथ में---
तोल सके तो तोल। बाबा, मनकी आँखें खोल!

झूठे हैं सब दुनियावाले,
तन के उजले मनके काले,
इनसे अपना आप बचा ले,
रीत कहाँ की प्रीत कहाँ की---
कैसा प्रेम-किलोल। बाबा, मनकी आँखें खोल!

 
तेरी मरज़ी में आए जो  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है
कहीं पर दिन निकलता है, कहीं पर रात होती है
कहीं सूखा पड़ा भारी, कहीं बरसात होती है
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है

 
कोई नहीं पराया  - गोपालदास ‘नीरज’

कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है।

 
दे, मैं करूँ वरण  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'


दे, मैं करूँ वरण
जननि, दुःखहरण पद-राग-रंजित मरण ।

 
मेंहदी से तस्वीर खींच ली  - माखनलाल चतुर्वेदी

मेंहदी से तस्वीर खींच ली किसकी मधुर! हथेली पर ।

प्राणों की लाली-सी है यह, मिट मत जाय
हाथों में रसदान किये यह, छुट मत जाय
यह बिगड़ी पहचान कहीं कुछ बन मत जाय
रूठन फिसलन से मन चाही मन मत जाय!

बेच न दो विश्वास-साँस को, उस मुस्कान अधेली पर!
मेंहदी से तस्वीर खींच ली किसकी मधुर! हथेली पर ।

हाथों पर लिख रक्खा है क्या सौदा आँख-मिचौनी का?
आँखों में भर लायी हो क्या रस? आहत अनहोनी का?
क्या बाजी पर चढ़ा दिये ये विमल गोद के धन आली?
क्या कहलाने लगा जगत में हर माली ही वनमाली?

तुम्हें याद कर रहा प्राणधन उस झिड़कन अलबेली पर ।
मेंहदी से तस्वीर खींच ली किसकी मधुर! हथेली पर ।

-माखनलाल चतुर्वेदी

 
दीप से दीप जले  - माखनलाल चतुर्वेदी

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें,
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।

 
मैं सूने में मन बहलाता  - शिवमंगल सिंह सुमन

मेरे उर में जो निहित व्यथा
कविता तो उसकी एक कथा
छंदों में रो-गाकर ही मैं, क्षण-भर को कुछ सुख पा जाता
मैं सूने में मन बहलाता।

 
चलना हमारा काम है  - शिवमंगल सिंह सुमन

गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर-दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूँ, तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।

 
गीत गाने को दिए पर स्वर नहीं  - शिवमंगल सिंह सुमन

दे दिए अरमान अगणित
पर न उनकी पूर्ति दी,
कह दिया मन्दिर बनाओ
पर न स्थापित मूर्ति की।

 
वरदान माँगूँगा नहीं  - शिवमंगल सिंह सुमन

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं॥

 
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!

 
स्नेह-निर्झर बह गया है | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

स्नेह-निर्झर बह गया है
रेत ज्यों तन रह गया है।

 
रोते-रोते रात सो गई  - Atal Bihari Vajpayee

झुकी न अलकें
झपी न पलकें
सुधियों की बारात खो गई

दर्द पुराना
मीत न जाना
बातों ही में प्रातः हो गई

घुमड़ी बदली
बूँद न निकली
बिछुड़न ऐसी व्यथा बो गई
रोते-रोते रात सो गई

 
मेरे देश की माटी सोना | गीत  - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना,
जागो भैया भारतवासी, मेरी है ये कामना।
दिन तो दिन है रातों को भी थोड़ा-थोड़ा जागना,
माता के आँचल पर भैया, आने पावे आँच ना।

 
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई? | गीत  - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk

आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?

 
रो उठोगे मीत मेरे  - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ,
पीर की प्रतिमा बना मैं जा रहा हूँ।

 
सजनवा के गाँव चले  - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

सूरज उगे या शाम ढले,
मेरे पाँव सजनवा के गाँव चले।

 
मैंने जाने गीत बिरह के  - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है,
कदम-कदम पर मिली विवशता, साँसों में विश्वास नहीं है।
छल से छला गया है जीवन,
आजीवन का था समझौता।
लहरों ने पतवार छीन ली,
नैया जाती खाती गोता।
किस सागर जा करूँ याचना, अब अधरों पर प्यास नहीं है,
मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है।

 
चलो कहीं पर घूमा जाए | गीत  - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

चलो कहीं पर घूमा जाए,
थोड़ा मन हल्का हो जाए।
सबके, अपने-अपने ग़म हैं,
किस ग़म को कम आँका जाए।

 
माँ की ममता जग से न्यारी !  - डॉ शम्भुनाथ तिवारी

माँ की ममता जग से न्यारी !

 
माँ की याद बहुत आती है !  - डॉ शम्भुनाथ तिवारी

माँ की याद बहुत आती है !

 
हम भी काट रहे बनवास  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हम भी काट रहे बनवास
जावेंगे अयोध्या नहीं आस

 

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