देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
लोक-कथाएं 
 
क्षेत्र विशेष में प्रचलित जनश्रुति आधारित कथाओं को लोक कथा कहा जाता है। ये लोक-कथाएं दंत कथाओं के रूप में एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में प्रचलित होती आई हैं। हमारे देश में और दुनिया में छोटा-बड़ा शायद ही कोई ऐसा हो, जिसे लोक-कथाओं के पढ़ने या सुनने में रूचि न हो। हमारे देहात में अभी भी चौपाल पर गांववासी बड़े ही रोचक ढंग से लोक-कथाएं सुनते-सुनाते हैं। हमने यहाँ भारत के विभिन्न राज्यों में प्रचलित लोक-कथाएं संकलित करने का प्रयास किया है।
 
Literature Under This Category
 
निराला की शिक्षाप्रद कहानियां  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

'निराला की सीखभरी कहानियाँ' में सम्मिलित कई रचनाएं उनकी मौलिक न होकर उनके द्वारा एसोप फेबल्स की अनुदित कहानियाँ हैं। 'निराला' ने एसोप की कथाओं का सुन्दर भावानुवाद किया है। एसोप फेबल्स या एसोपपिका प्राचीन ग्रीक कथाकार एसोप द्वारा लिखीं गई है और उसी के नाम से जानी जाती है । यह कहानियाँ प्राचीन समय से ही काफी लोकप्रिय है। आइए, निराला की सीखभरी कहानियों का आनंद उठाएं और इनसे सीख लें ।

 
आत्म-निर्भरता  - भारत-दर्शन संकलन | Collections

एक बहुत भोला-भाला खरगोश था। उसके बहुत से जानवर मित्र थे।  उसे आशा थी कि वक्त पड़ने पर मेरे काम आएँगे।

 
रहीम और कवि गंग  - भारत-दर्शन संकलन | Collections

कहा जाता है कि रहीम दान देते समय ऑंखें उठाकर ऊपर नहीं देखते थे। याचक के रूप में आए लोगों को बिना देखे वे दान देते थे। अकबर के दरबारी कवियों में महाकवि गंग प्रमुख थे। रहीम के तो वे विशेष प्रिय कवि थे। एक बार कवि गंग ने रहीम की प्रशंसा में एक छंद लिखा, जिसमें उनका योद्धा-रूप वर्णित था। इसपर प्रसन्न होकर रहीम ने कवि को छत्तीस लाख रुपए भेंट किए।

 
कुंभनदास और अकबर कथा  - भारत-दर्शन संकलन | Collections

कुंभनदास जी गोस्वामी वल्लभाचार्य के शिष्य थे। इनकी गणना अष्टछाप में थी। एक बार इन्हें अकबर के आदेश पर फतेहपुर सीकरी हाजिर होना पड़ा।

 
नन्दा  - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'

नन्दा तीन दिन से भूखा था; पेट की ज्वाला से अधमरा!

 
राजा ब्रूस और मकड़ी  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

[अनुवादित कथा-कहानी]

 
साही और साँप | शिक्षाप्रद कहानी  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी । एक साँप ने खुशामद पर आकर एक साही को अपने बिल में रहने की जगह दी । वह बिल एक छोटा-सा बिल था । उसमें घूमने-फिरने की काफी जगह न थी । साही के जरा हिलते ही उसके काँटे साँप के चुभते थे ।

 
पूत पूत, चुप चुप  - रामनरेश त्रिपाठी

मेरे मकान के पिछवाड़े एक झुरमुट में महोख नाम के पक्षी का एक जोड़ा रहता हैं । महोख की आँखें तेज़ रोशनी को नहीं सह सकतीं, इससे यह पक्षी ज्यादातर रात में और शाम को या सबेरे जब रोशनी की चमक धीमी रहती है, अपने खाने की खोज में निकलता है। चुगते-चुगते जब नर और मादा दूर-दूर पड़ जाते हैं, तब एक खास तरह की बोली बोलकर जो पूत पूत ! या चुप चुप ! जैसी लगती है, एक दूसरे को अपना पता देते हैं, या बुलाते हैं। इनकी बोली की एक बहुत ही सुन्दर कहानी गांवों में प्रचलित हैं। वह यह है--

 
दो घड़े | शिक्षाप्रद  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का। दोनों नदी के किनारे रखे थे। इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव में दोनों घड़े बहते चले। बहुत समय मिट्टी के घड़े ने अपने को पीतलवाले से काफी फासले पर रखना चाहा।

 
महावीर और गाड़ीवान | Motivational  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

एक गाड़ीवान अपनी भरी गाड़ी लिए जा रहा था। गली में कीचड़ था। गाड़ी के पहिए एक खंदक में धँस गए। बैल पूरी ताकत लगाकर भी पहियों को निकाल न सके। बैलों को जुए से खोल देने की जगह गाड़ीवान ऊँचे स्वर में चिल्‍ला-चिल्‍लाकर इस बुरे वक्त में देवताओं की मदद माँगने लगा कि वे उसकी गाड़ी में हाथ लगाएँ। उसी समय सबसे बली देवता महावीर गाड़ीवान के सामने आकर खड़े हो गए, क्योंकि उसने उनका नाम लेकर कई दफा उन्हें पुकारा था।

 
शारदा और मोर  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

शारदा देवताओं की रानी थीं । वैसी रूपवती दूसरी देवी नहीं थी । उनकी प्यारी चिड़िया मोर था । खुशनुमा परों और भारी-भरकम आकार के कारण वह देवताओं की रानी सरस्वती का वाहन होने लायक था ।

 
सौदागर और कप्तान | सीख भरी कहानी  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

एक सौदागर समुद्री यात्रा कर रहा था, एक रोज उसने जहाज के कप्‍तान से पूछा, ''कैसी मौत से तुम्‍हारे बाप मरे?"

 
बुद्धू बेलोग  - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड



बात काफी पुराने समय की है जब न टीवी थी ना रेडिओ, ना इंटरनेट ना फोन. इंडोनेशिया के द्वीप बाली में एक सीधा-साधा सा लड़का अपनी माँ के साथ रहा करता था। वो इतना सीधा था कि कोई न कोई बेवकूफी कर बैठता था और लोगों को लगता था कि ये तो बुद्धू है। पता नहीं उसका असली नाम क्या था लेकिन गाँव वाले उसे 'बेलोग' पुकारने लगे थे जिसका अर्थ बाली की भाषा में होता है- बुद्धू।

 
काबायान अमीर न बन सका  - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड

काबायान एक गरीब आदमी था। उसकी जीविका 'रोज़ कुंवा खोदो, रोज़ पानी पीओ' वाले ढर्रे पर चल रही थी। दुनिया के तमाम लोगों की तरह वह भी अमीर होने का सपना देखता था।

 
सिना और ईल  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

बहुत पुरानी बात है। सामोआ द्वीप में सिना नाम की एक खूबसूरत लड़की रहती थी। सिना के घर के पास समुद्र ही समुद्र था। सिना पानी में खूब तैरती और तरह-तरह की जल क्रीडाएं करती। वहीं समुद्र तट के पास रहने वाली एक ईल मछली सिना के साथ-साथ तैरती और खेलती। समय बीतता गया और ईल सिना की बहुत अच्छी दोस्त बन गई। सिना और ईल साथ-साथ तैरती, साथ-साथ खेलती। सिना तैरती हुई जहाँ भी जाती ईल उसके साथ-साथ रहती। ईल अब आकार में बड़ी होती जा रही थी और सिना के प्रति उसका लगाव अब सिना को बंधन सा लगने लगा। सिना ईल से तंग आने लगी।

 
विक्रमादित्य का न्याय  - भारत-दर्शन

विक्रमादित्य का राज था। उनके एक नगर में जुआ खेलना वर्जित था। एक बार तीन व्यक्तियों ने यह अपराध किया तो राजा विक्रमादित्य ने तीनों को अलग-अलग सज़ा दी। एक को केवल उलाहना देते हुए, इतना ही कहा कि तुम जैसे भले आदमी को ऐसी हरकत शोभा नहीं देती। दूसरे को कुछ भला-बुरा कहा, और थोड़ा झिड़का। तीसरे का मुँह काला करवाकर गधे पर सवार करवा, नगर भर में फिराया।

 
कंगारू के पेट की थैली  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड



बहुत पुरानी बात है। उस समय कंगारू के पेट पर थैली नहीं होती थी। विज्ञान इस बारे में जो भी कहे लेकिन इस बारे में ऑस्ट्रेलिया में एक रोचक लोक-कथा है। बहुत पहले की बात है। एक दिन एक मादा कंगारू अपने बच्चे के साथ जंगल में घूम रही थी। बाल कंगारू पूरी मस्ती में था। वह जंगल में पूरी उछल-कूद कर रहा था।

 
ऐसे थे रहीम  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

रहीम दान देते समय आँख उठाकर ऊपर नहीं देखते थे। याचक के रूप में आए लोगों को बिना देखे, वे दान देते थे। अकबर के दरबारी कवियों में महाकवि गंग प्रमुख थे। रहीम के तो वे विशेष प्रिय कवि थे। एक बार कवि गंग ने रहीम की प्रशंसा में एक छंद लिखा, जिसमें उनका योद्धा-रूप वर्णित था। इसपर प्रसन्न होकर रहीम ने कवि को छत्तीस लाख रुपए भेंट किए।

 

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