परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
जितने पूजाघर हैं | ग़ज़ल (काव्य)    Print  
Author:राजगोपाल सिंह
 

जितने पूजाघर हैं सबको तोड़िये
आदमी को आदमी से जोड़िये

एक क़तरा भी नहीं है ख़ून का
राष्ट्रीयता की देह न निचोड़िये

स्वार्थ में उलझे हैं सारे रहनुमां
इनपे अब विश्वास करना छोड़िये

घर में चटखे आइने रखते कहीं
दूर जाकर फेंकिये या फोड़िये

इक छलावे से अधिक कुछ भी नहीं
कुर्सियों की ये सियासत छोड़िये

- राजगोपाल सिंह

 

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें