अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
बच्चो, चलो चलाएं चरखा (बाल-साहित्य )    Print  
Author:आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)
 

चरखा

बच्चो, चलो चलाएं चरखा,
बापू जी ने इसको परखा।
चरखा अगर चलेगा घर-घर,
देश बढ़ेगा इसके दम पर।

इसको भाती नहीं गरीबी,
ये बापू का बड़ा करीबी।
चरखा चलता चक्की चलती,
इससे रोटी-रोज़ी मिलती।

ये खादी का मूल-यंत्र है,
आजादी का मूल-मंत्र है।
इस चरखे में स्वाभिमान है,
पूर्ण स्वदेशी का गुमान है।

इसे चलाकर खादी पाओ,
विजली पाकर वल्व जलाओ।
दूर गाँव जब चलता चरखा,
विजली पा सबका मन हरखा।

खादी को घर-घर पहुँचाओ,
बुनकर के कर सबल बनाओ।
घर-घर जब होगी खुशहाली,
तभी मनेगी सही दिवाली।

चलो, चलें खादी अपनाएं,
खादी के प्रति प्रेम जगाएं।
मन में गांधी, तन पर खादी,
तब समझो पाई आजादी।

मेरे 'मन की बात' सुनो तुम,
बापू की सौगात सुनो तुम।
बापू को चरखा था प्यारा,
और स्वच्छता उनका नारा।

- आनन्द विश्वास

 

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश