जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
नानी वाली कथा-कहानी (काव्य)    Print  
Author:आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)
 

नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटी-युग में बेटा-बेटी,
सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे।
फौलादी ले नेक इरादे,
खुद अपना इतिहास गढ़ेंगे।
देश पढ़ेगा, देश बढ़ेगा, दौड़ेगी अब, तरुण जवानी।
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।
बेटा शिक्षित, आधी शिक्षा,
दोनों शिक्षित पूरी शिक्षा।
हमने सोचा,मनन करो तुम,
सोचो समझो करो समीक्षा।
सारा जग शिक्षामय करना,हमने सोचा मन में ठानी।
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।
अब कोई ना अनपढ़ होगा,
सबके हाथों पुस्तक होगी।
ज्ञान-गंग की पावन धारा,
सबके आँगन तक पहुँचेगी।
पुस्तक और कलम की शक्ति,जग जाहिर जानी पहचानी।
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।
बेटी-युग सम्मान-पर्व है,
पुर्ण्य-पर्व है, ज्ञान-पर्व है।
सब सबका सम्मान करे तो,
जन-जन का उत्थान-पर्व है।
सोने की चिड़िया तब बोले,बेटी-युग की हवा सुहानी।
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।

- आनन्द विश्वास

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