यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
सजनवा के गाँव चले  (काव्य)    Print  
Author:आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)
 

सूरज उगे या शाम ढले,
मेरे पाँव सजनवा के गाँव चले।

सपनों की रंगीन दुनियाँ लिये,
प्यासे उर में वसन्ती तमन्ना लिये।
मेरे हँसते अधर, मेरे बढ़ते कदम,
अश्रुओं की सजीली सी लड़ियाँ लिये।

कोई हँसे या कोई जले,
मेरे पाँव सजनवा के गाँव चले।

आज पहला मिलन है अनोंखा मिलन,
धीर धूलि हुआ, जाने कैसी लगन।
रात होने लगी, साँस खोने लगी,
चाँद तारे चमकते बहकते नयन।

कोई मिले या कोई छले,
मेरे पाँव सजनवा के गाँव चले।

दो हृदय का मिलन बन गया अब रुदन,
हैं बिलखते हृदय तो बरसते नयन।
आत्मा तो मिली जा प्रखर तेज से,
है यहाँ पर बिरह तो, वहाँ पर मिलन।

श्रेय मिले या प्रेय मिले,
मेरे पाँव सजनवा के गाँव चले।

दुलहन आत्मा चल पड़ी देह से,
दो नयन मिल गये जा परम गेह से।
माँ की ममता लिये देह रोती रही,
मग भिगोती रही प्यार के मेह से।

ममता हँसे या आँसू झरे,
मेरे पाँव सजनवा के गाँव चले।

-आनन्द विश्वास

 

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश