यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
चिन्टू जी | बाल कविता (बाल-साहित्य )    Print  
Author:प्रकाश मनु | Prakash Manu
 

सब पर अपना रोब जमाते
नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी !
भैया से अब्बा कहते हैं
दीदी से करते हैं कुट्टी,
पापा से कहते हैं - मेला
दिखलाओ जी, कल है छुट्टी ।
कैसे-कैसे दांव चलाते
नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी !
हलुआ-पूरी जी भर खाते
या फिर बरफी पिस्ते वाली,
रसगुल्ले जब आते घर में
आ जाती चेहरे पर लाली ।
धमा-चौकड़ी खूब मचाते
नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी !
हरदम बजती पीं-पीं सीटी.
सारे दिन ही हल्ला-गुल्ला,
कोई रोके तो कहते हैं
क्या मैं बैठा रहूँ निठल्ला !
बिना बात की बात बनाते
नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी !

- डा. प्रकाश मनु
[साभार - श्रेष्ठ बालगीत, गीतांजलि प्रकाशन]

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