भारत-दर्शन::इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका
Find Us On:
आज वह रोया यह सोचते हुए कि रोना कितना हास्यास्पद है वह रोया मौसम अच्छा था धूप खिली हुई सब ठीक-ठाक सब दुरुस्त बस खिड़की खोलते ही सलाखों से दिख गया ज़रा-सा आसमान और वह रोया फूटकर नहीं जैसे जानवर रोता है माँद में वह रोया।
- केदारनाथ सिंह
इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें