यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
मौज-मस्ती के पल भी आएंगे | ग़ज़ल (काव्य)    Print  
Author:राजगोपाल सिंह
 

मौज-मस्ती के पल भी आएंगे
पेड़ होंगे तो फल भी आएंगे

आज की रात मुझको जी ले तू
चांद-तारे तो कल भी आएंगे

चाहतें दोस्ती की पैदा कर
रास्ते तो निकल भी आएंगे

आइने लाए जाएंगे जब तक
लोग चेहरे बदल भी आएंगे

अजनबी बादलों से क्या उम्मीद
आए तो ले के जल भी आएंगे

- राजगोपाल सिंह

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश