जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
पहले हम खुद ईमानदार बनें (विविध)    Print  
Author:डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Dr Ved Pratap Vaidik
 

दिल्ली सरकार बधाई की पात्र है कि उसने नागरिक अधिकार क़ानून को अब पहले से भी अधिक मजबूत बना दिया है। अब दिल्लीवासियों को 96 प्रकार के सरकारी कामों को निश्चित समय में पूरा करके दिया जाएगा। दिल्ली सरकार के 22 विभागों में फैली इन 96 प्रकार की सेवाओं से लाखों दिल्लीवासियों का रोज पाला पड़ता है। हर दिल्लीवासी की हैसियत ऐसी नहीं कि वह मुख्यमंत्री, मंत्री या सांसद-विधायक तक पहुंच सके। सरकारी कर्मचारी जान-बूझकर मामलों को लटकाए रखते हैं। आम आदमी रिश्वत देने को मजबूर हो जाता है। उसके सही काम भी सही समय पर नहीं होते। अब प्रावधान यह है कि अमुक काम अमुक समय में पूरा करके नागरिकों को देना होगा। यदि कर्मचारी उसे पूरा नहीं करेंगे तो उनके वेतन में से प्रतिदिन के हिसाब से कुछ न कुछ राशि काट ली जाएगी। 10-20 रू की राशि बहुत छोटी मालूम पड़ती है लेकिन वेतन-कटौती अपने आप में बड़ी सज़ा है। वह कर्मचारी के आचरण पर कलंक की तरह चिपक जाएगी। आशा की जानी चाहिए कि इस प्रावधान से आम लोगों को काफी राहत मिलेगी।

लेकिन जब तक नागरिक लोग खुद पहल नहीं करेंगे, सरकार के इस कदम का कोई ठोस लाभ उन्हें नहीं मिलेगा। अपनी अर्जीयों के साथ वे यदि समयबद्धता की शर्त दर्ज नहीं कराएंगे तो कुछ भी नहीं होगा। उन्हें दृढ़ता दिखानी होगी। रिश्वतख़ोर और आलसी कर्मचारियों के विरूद्ध उनको काररवाई करनी होगी। तभी ठोस नतीजे सामने आएंगे। पिछले दो सौ साल से मौज-मस्ती छान रही नौकरशाही सिर्फ नियम-क़ायदों से पटरी पर नहीं आने वाली है। जनता को उसे अपना नौकर मानकर उसके साथ सख्ती से पेश आना होगा। इसके लिए यह भी जरूरी है कि लोग अपने आप को साफ-सुथरा रखें। गलत काम न करें। यदि जनता सही रास्ते पर चलेगी तो ही वह अफसरों से काम ले सकेगी। वरना समयावधि तय होने के बावजूद रिश्वत चलती रहेगी। हमारे अफसरों को बेईमानी की लत इसीलिए पड़ी है कि हमारे लोग पूरी तरह ईमानदार नहीं हैं। जरूरी है कि पहले हम खुद ईमानदार बनें।

फरवरी 2012

- डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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