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जा तेरे स्वप्न बड़े हों।भावना की गोद से उतर करजल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लियेरूठना मचलना सीखें।हँसेंमुस्कुराऐंगाऐं।हर दीये की रोशनी देखकर ललचायेंउँगली जलायें।अपने पाँव पर खड़े हों।जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
- दुष्यंत कुमार
Bharat-Darshan, Hindi literary magazine from New Zealand
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