परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ | दुष्यंत कुमार  (काव्य)    Print  
Author:दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar
 

मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ
वो गज़ल आपको सुनाता हूँ।

एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ

तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल -सा थरथराता हूँ

हर तरफ़ एतराज़ होता है
मैं अगर रोशनी में आता हूँ

एक बाजू उखड़ गया जब से
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ

मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने करीब पाता हूँ

कौन ये फासला निभाएगा,
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ

- दुष्यंत कुमार

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