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बेनकाब चेहरे हैं,दाग बड़े गहरे हैं,टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ ।गीत नही गाता हूँ ।
लगी कुछ ऐसी नज़र,बिखरा शीशे सा शहर,अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ । गीत नहीं गाता हूँ ।
पीठ मे छुरी सा चाँद,राहु गया रेखा फाँद,मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ ।गीत नहीं गाता हूँ ।
- अटल बिहारी वाजपेयी
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