अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
भारी नहीं, भाई है | लघुकथा  (कथा-कहानी)    Print  
Author:सुदर्शन | Sudershan
 

मैंने कांगड़े की घाटी में एक लड़की को देखा, जो चार साल की थी, और दुबली-पतली थी। और एक लड़के को देखा, जो पांच साल का था, और मोटा ताज़ा था। यह लड़की उस लड़के को उठाए हुए थी, और चल रही थी।

लडकी के पांव धीरे धीरे उठते थे, और उसका रास्ता लम्बा था, और उसके माथे पर पसीने के मोती चमकते थे। वह हांप रही थी। 

मैंने लड़की से पूछा--"क्या यह लड़का भारी है?"

लड़की ने पहले हैरान होकर मेरी तरफ देखा, फिर मुस्कराकर लड़के की तरफ देखा, फिर जवाब दिया--"नहीं, यह भारी नहीं है। यह तो भाई है।"

-सुदर्शन

[जुलाई, 1947]

संपादक की टिप्पणी : इस लघुकथा का मूल शीर्षक 'बहन भाई' था। 

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