देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
वंदे मातरम्‌ (काव्य)    Print  
Author:सुब्रह्मण्य भारती | Subramania Bharati
 

जय भारत, जय वंदे मातरम्‌॥
जय-जय भारत जय-जय भारत, जय-जय भारत, वंदे मातरम्‌।
जय भारत, जय वंदे मातरम्‌।।

एक वाक्य है केवल, जिसको दुहराना है,
आर्यभूमि की आर्य नारियों नर सूर्यों को : वंदे मातरम्‌।
जय भारत, जय वंदे मातरम्‌।।

एक वाक्य है केवल, जिसको दुहराना है,
घुट-घुटकर मरते भी अति पीड़ित जन-जन को : वंदे मातरम्‌।
जय भारत जय वंदे मातरम्‌।।

प्राण जाएँ पर चिर नूतन उमंग से भरकर
केवल एक वाक्य गाएँगे हम सब मिलकर : वंदे मातरम्‌।
जय भारत, जय वंदे मातरम्‌॥

जय-जय भारत, जय-जय भारत, जय-जय भारत, वंदे मातरम्‌।
जय भारत, जय वंदे मातरम्‌॥
मूल शीर्षक : 'वंदे मातरम्‌'

-सुब्रह्मण्य भारती

(साभार : सुब्रह्मण्य भारती की राष्ट्रीय कविताएं एवं पांचाली शपथम्, रूपांतर: नागेश्वर सुंदरम्,
विश्वनाथ सिंह विश्वासी)

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें