अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
नन्ही सचाई (काव्य)    Print  
Author:अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar
 

एक डॉक्टर मित्र हमारे
स्वर्ग सिधार।
कोरोना से मर गए,
सांत्वना देने
हम उनके घर गए।

उनकी नन्ही-सी बिटिया
भोली-नादान थी
जीवन-मृत्यु से अनजान थी।

हमेशा की तरह
द्वार पर आई,
देखकर मुस्कुराई।
उसकी नन्ही सच्चाई
दिल को लगी बेधने,
बोली-- अंकल!
भगवान जी बीमार हैं न
पापा गए हैं देखने।

- अशोक चक्रधर

 

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