भारत-दर्शन::इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका
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बादल ही क्यों ना फट जाएँतेरे पीछे मे रोती भी नहींमेरे आंसुओं को भीतेरी हीउँगलियों से पुंछने की आदत है। तुझे पाकर ही छलकता है भरा मनतुझे पाकर ही टूटता है बाँधतुझे पाकर ही लौटती है होंठों पर गुनगुनाहटतुझे पाकर ही खिलती हैउजली धूप से मुस्कान। तुझसे ही प्राण पाती हैंमेरी संवेदनाएंतुझसे ही जागती है मेरी चेतनातुझे पा लेती हूँतो जी जाती हूँ।
-प्रीता व्यास न्यूज़ीलैंड
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