घर (काव्य)    Print  
Author:अनिल जोशी | Anil Joshi
 

शाम होते ही
वो कौन-से रास्ते हैं, जिन पर मैं चल पड़ता हूँ
वो किसके पैरों के निशान हैं, जिनका मैं पीछा करता हूँ
इन रास्तों पर कौन सी मादा महक है
किन बिल्लियों की चीख की कोलाहल की प्रतिध्वनियां
गूंजती है कानों में
लौटते हुए रास्ते में पहचाने हुए यात्री
ना सुखी, ना दुखी, ना प्रसन्न, ना उदास
सिर्फ एक होने भर का भाव
वाहनों से उतर अपने-अपने रास्ते पकड़ लेते हैं,
किसका पीछा करते हुए आ गया हूँ मैं
घर के दरवाजे पर खड़ा दस्तक देता हूँ
एक लैंडस्केप को अपने विशिष्ट आकार और रंग से भरने के लिए।

- अनिल जोशी
   उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल  
   शिक्षा मंत्रालय, भारत

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