देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
जीवन और मौसम (काव्य)    Print  
Author:डॉ रमेश पोखरियाल निशंक
 

छँटने लगे हैं बादल
धुंध होने लगी कम,
नई सुबह की है आहट
बदलने लगा मौसम। 
दिखने लगा रास्ता
मिटने लगा है भ्रम,
जीवन की घोर बाधाएँ
दृढ़ता के सामने
पड़ने लगी हैं कम। 
प्रकृति के साथ-साथ
जीवन का भी
बदलने लगा जीवन।

- रमेश पोखरियाल 'निशंक'
      [संघर्ष जारी है]

 

 

 

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