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हड्डियों में बस गई है पीर । पाँव में काँटा लगा जैसे जो बढ़ते क़दम को रोके मगर इस का क्या करूँ जो गई मेरी हड्डियों को चीर ।
दुख की रात का होता सवेरा मगर इस का हर घडी डेरा कौन से मनहूस पल में किसी दुश्मन ने लिखी तक़दीर ।
क्या सजा है इस जनम की या इस जनम में पाले भरम की ख़्वाहिशों के पाँव में बाँधी किस ने दु:ख की ज़ंजीर ।
- डॉ॰ सुधेश 314 सरल अपार्टमैंट्स, द्वारका, सैक्टर 10 दिल्ली 110075 फ़ोन 9350974120 ई-मेल: dr.sudhesh@gmail.com
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