अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
अब अँधेरों से लिपटकर | ग़ज़ल  (काव्य)    Print  
Author:भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया
 

अब अँधेरों से लिपटकर यूँ ना रोया कीजिए
हो घड़ी भर के लिए पर, कुछ तो सोया कीजिए

बन्द रहने दो ये आँसू,अपने दिल की सीप में
कीमती मोती हैं ये, इनको ना खोया कीजिए

यूँ सफर ये जिंदगी का,है बहुत मुश्किल मगर
साथ में मिल के जिए जो, पल सँजोया कीजिए

बंद आँखों में सजे, सपनों के हैं बादल घने
आँसुओं की धार से, उनको ना धोया कीजिए

उग रही हो पौध जब आँतक की ही हर तरफ़
उस जमी पर प्यार के कुछ, बीज बोया कीजिए

-डॉ० भावना कुँअर
 सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

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