अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
नानी का बटुआ (बाल-साहित्य )    Print  
Author:प्रकाश मनु | Prakash Manu
 

कुक्कू को टॉफियाँ खाना अच्छा लगता था। रोज वह सुबह-शाम नानी से कहता, ''नानी...नानी, पैसे दो। टॉफियाँ लेनी हैं।''

नानी हर बार कुक्कू को एक अठन्नी निकालकर देती थी। कुक्कू दौड़ा-दौड़ा जाता। अपनी मनपसंद टॉफियाँ खरीदता और उन्हें जेब में रख, उछलता-कूदता घर आ जाता।

पर ज्यादा टॉफियाँ खाने से कुक्कू के दाँत खराब होने लगे। कभी-कभी पेट में भी दर्द होता। अब नानी टॉफी के लिए पैसे देने में आनाकानी करती थी। तब कुक्कू ने दूसरा तरीका निकाला। वह चुपके से नानी के बटुए में से पैसे निकालकर ले जाता। टॉफियाँ खरीदकर बाहर ही खा लेता। फिर उछलता-कूदता घर आ जाता।

नानी कुछ दिनों से देख रही थी, बटुए में रखे पैस कम हो जाते हैं। समझ गई, कुक्कू की शरारत है। पर कुक्कू से पूछा, तो वह हँसते-हँसते बोला, ''मैं क्या जानूँ नानी!''

एक दिन दोपहर का समय था। नानी अपनी खाट पर लेटी हुई थी। कुक्कू चुपके से उठा और दूसरे कमरे में अलमारी में रखे बटुए को उठा लिया। अभी वह बटुए से पैसे निकाल ही रहा था कि अचानक अजीब सी भरभराई आवाज सुनाई दी, ''ठहरो!''

कुक्कू चौंक गया। घबराकर बोला, ''तुम...! तुम कौन बोल रहे हो? क्या भूत?''

''नहीं-नहीं, मैं बटुआ बोल रहा हूँ।'' फिर वही आवाज सुनाई दी, ''साफ-साफ कह दो, आज तक कितने पैसे चुराए हैं तुमने? नहीं तो तुम छोटे होकर इसी बटुए में बंद हो जाओगे, मक्खी की तरह!''

''नहीं-नहीं, ऐसा मत करना। मैं साफ-साफ बताए देता हूँ।'' कुक्कू रोंआसा हो गया। बोला, ''अभी सिर्फ पंद्रह दिन से ही मैंने यह काम शुरू किया है। रोजाना एक रुपया निकालता हूँ, नानी जब दोपहर में सो जाती है, तब। आगे से यह गलती नहीं करूँगा, कभी नहीं!''

''तो ठीक है, मुझे उसी जगह रख दो जहाँ से तुमने उठाया था।'' फिर वही भरभराई आवाज सुनाई दी।

कुक्कू ने झटपट बटुआ रखा और अपनी खाट पर आकर लेट गया। देखा, नानी भी अपनी चारपाई पर उसी तरह लेटी है। उसका मन हुआ, वह नानी को उठाकर सारी बात बताए, पर अंदर ही अंदर वह डर भी रहा था।

उस दिन के बाद जाने क्या हुआ, कुक्कू ने खुद ही टॉफियाँ खाना कम कर दिया। नानी कभी-कभी टॉफी के लिए पैसे देती, तो कुक्कू गुनसुन करके कहता, ''नहीं नानी, रहने दो।''

हाँ, उसके बाद एक-दो बार कुक्कू ने नानी से डरते-डरते यह जरूर पूछा, ''नानी-नानी, क्या तुम्हारा बटुआ जादू वाला है। बोलता भी है?''

पर नानी कभी सीधे-सीधे इसका जवाब नहीं देती। हँसकर कहती है, ''रहने दे कुक्कू, बटुआ भी कहीं बोलता है। तूने जरूर कोई सपना देखा होगा।''

--प्रकाश मनु 
  [बच्चों को सीख देने वाली 51 कहानियाँ, डायमंड पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली]

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